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(२७४) थोनीयें ॥ ५७ ॥ त्रुटक ॥ थोनियें चित्त नित एम जावी, चोथीनावना नावियें ॥ समकित निधान स मस्त गुणन, एहq मन लावियें ॥ तेह विण बूटा र त्न सरिखा, मूल नुत्तर गण सवे ॥ किम रहे ताके जेह हरवा, चोर जोर नवे नवे ॥ एए ॥ ढाल ॥ना वो पंचमी रे नावना शम दम सार रे,एथिवी परें रेस मकित तसु आधार रे ।। रही नावना रे नाजन सम कित जो मले, श्रुत शीजनो रे तो रस तेहमां नावि ढ से ॥६॥त्रुटक॥ नवि ढले समकित नावना रस, अमि य सम संवर तणो॥पट जावना एकही एहमां, करो यादर अति घणो || श्म नावतां परमार्थ जलनिधि, होय निनु फकफोल ए॥धन पवन पुण्य प्रमाण प्रगटे, चिदानंद कनोल ए ॥ ६१ ॥ ढाल ॥ जे मुनिवेष शके नवि बंमी॥ ए देशी ॥ ठरे जिहां समकित ते था नक, तेहना पट विध कहियें रे ॥ तिहाँ पहेलुं था नक ने चेतन, लक्षण प्रातम सहियें रे ॥ खीर नीर परें पुजलमिश्रित, पण एहथी ले अलगो रे ॥ अनुनव हंस चंच जो लागे, तो नवि दीसे वलगो रे ॥ ६२ ॥ बीजें थानक नित्य आतमा, जे अनुनूत संजारे रे॥ बालकने स्तनपान वासना, पूरव नव अ नुसारें रे ॥ देव मनुज नरकादिक तेहना, ने अनि त पर्याय रे ॥ इव्यथकी अविचलित अखंमित, निज गुण प्रातमराय रे ॥ ६३ ॥ त्रीजुं थानक चेतन कर्ता, कर्म तणे ने योगें रे ॥ कुंनकार जिम कुंन त