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(१६४) बन्नु लाख वायुमद्य, सुणियें सुरनाद ॥३॥ दीपकु मार दिशाकुमार, वली उदधिकुमार ॥ विद्युत स्तनितकु मार अने, वलीअग्निकुमार ॥४ाए गए स्थानक जाणि ये,प्रत्येकें जिनहर ॥ बहुंतेर बढुंतेर लाख तिहां, नवि अण जिनसुरखकर ॥ ५॥ एवंकारें सवि मली, बहु तेर तिहां लाख ॥ साठ कोडि जिनहर नमुं, श्री जि नवर नांख ॥ ६॥ लाख साठ निव्यासी कोडी, अने तेरशे कोडी॥ जिन पडिमा श्रीजिन तणी, वंदूं वे कर जोडी ॥ ७ ॥ असंख्या व्यंतर जोशी, असं ख्या जिनहर ॥ असंख्य पडिमा जिन तणी, नमिय नहिं उर्गति मर ॥ ७ ॥ वाचकमूला कहे देव, दे सुमति सदा मुफ ॥ जिनवचनें दुं लीन थइ, गाउँ जिनजी तुज ॥ ए ॥ ढाल बही ॥ सोहम ईशान स नतकुमार ए, माहिंद बंजरे लांतक सार ए॥त्रुटक ॥ सार शुक्र अने सहसारह, आनत प्राणत धारण ॥ अजुत नवौवेयक त्रिक तिहां, पंच अनुत्तर तार ग ॥ अनुक्रमें प्रासाद कहीयें, लाख सहस शत सं खया ॥ बत्तीस अहावीस बारह, अह चन लख य रकया ॥१॥चाल ॥ पन्नास चालीश सहस जिनहरा, दोदो दोढज दोढज सतवरा ॥ त्रुटक ॥ वरा सत्तवर श्यारोत्तर, सत्तोत्तर शो जागीयें ॥ एकशो ऊपर पंच अनुत्तर, अनुक्रमें वखाणीयें ॥ सवे मलि जि नहर जिनहर, लाख चोराशी साख ए ॥ सहस स त्ता' आगला, तिहां वीश ने त्रण दाख ए॥२॥ चा