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(२६३) वीर, वर्तमानें जिनवरा ॥ कर जोडी वाचक जणे मूला, स्वामी सेवक सुखकरा ॥ ॥ ढाल त्रीजी॥ पद्मनान सूरदेव, सुपार्श्व स्वयंप्रन हो॥सर्वानुभूति देवसुत, उदय पेढालज जो॥ १॥ पोटिल सत्की र्ति, मुनिसुव्रत अमम निःकषाय ॥ निपुलायक निर्म म, चित्रगुप्ति वंदूं पाय ॥ २ ॥ समाधि सुसंवर, यशो धर विजय मन्त्री देव ॥ अनंत वीरज नश्कत, तेहनी कीजें सेव ॥३॥ अनागत जिनवर, होशे तेहनां ना म॥ नणे वाचक मूला, तेहने करुं प्रणाम ॥४॥ ॥ ढाल चोथी॥ महाविदेह पंच मकार, प्रत्येकें जि न चार ॥ सीमंधर जुगमंधर, बाहु सुबाहु अ सुखक र ॥१॥ सुजात स्वयंप्रन स्वामी, नसजानन ले ढुंना मी॥ अनंतवीरज देव, सरप्रनु करुं अ सेव ॥२॥ विशाल वजंधर सादु, चंशनन चंवादु ॥ नुजंग ई श्वर गावं; नेमी प्रनु चित्त ए सावं ॥ ३ ॥ वीरसेन महान वंदूं, देव जसा दी आनंदूं ॥ अजितवीर य वंदन, शाश्वता खनाचंशनन ॥ ४ ॥ वईमान वारिषेण ईश, ए दुथा जिनचोवीश ॥ एवा बन्नु ए जिनवर, वाचक मूला कहे सुरखकर ॥ ५ ॥ ढाल पां चमी॥ हवे पायालें लोक मद्य, जिहां असुर कुमार ॥ लाख चोश जिननुवन अडे, तिहां करूं जूहार ॥ ॥१॥ नागकुमारमांहि कह्या, तिहां लाख चोराशी ॥ एता जिनहर तिहां नर्मु, थाउं समकितवासी ॥ ॥॥ सोवन कुमार मद्य लाख, बलुतेर प्रासाद ॥