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(२४०) घणी अडे रे, जोगवो नोग संसार ॥ बती इति विलसो रे जाया घर आपणे रे, पलें लेजो संयम जार ॥ धारणी ॥ ॥ मेघकुमार रे माता प्रत्ये ब्रवी रे, दीक्षा लीधी वीरजीनी पान ॥ प्रीतिवि मल रे इणि परें उच्चरे रे, पोहोती महारा मनडानी आश ॥ धारणी० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥अथ श्री महावीर स्वामी स्तवनं ॥ ॥ प्रनुजी वीरजिणंदने वंदियें, चोव शमा जिन राय हो ॥ त्रिशलाना जारः ॥प्रनुजीने तामें तं नव निधि संपजे, जवख सवि मिटि जाय हो ॥ त्रिश लाना जाया ॥ १ ॥ ए अांकणी ॥ प्रनुजी कंचन वान कर सातनुं, जग तातनं. एटलुं मान हो ॥ त्रि प्रनुजी मृगपति संडन गाजतो, जांजतो मदगज मा न हो ॥ त्रि० ॥ २ ॥ प्रनुजी सिदारथ जगवंत नो, सिदारथ कुल चंद हो । त्रि० ॥ प्रनुजी चक्तवत्सल जव कुःखहरु, सुरतरु सम सुखकंद हो । त्रि० ॥ ॥३॥प्रचुजी गंधार बंदर गुणनिलो, जगतिलो जिहां जगदीस हो ॥ त्रि० ॥ प्रनुजीनु दर्शण देखिने चित्त तस्युं, सयुं मुफ वंबित ईश हो ॥ त्रि० ॥४॥प्रनुजी शिवनगरीनो राजीयो,जगतारण जिन देव हो॥त्रि०॥ प्रनुजी रंगविजयने आपजो, नवोनव तुम पाये सेव हो ॥ त्रि० ॥ ५ ॥ इति श्रीवीरजिनस्तवनं संपूर्णम् ॥
॥ अथ नेमनाथ स्तवनं ॥ ॥ नेम जिणंद जुहारीयें, नज्ज्वल गढ गिरनारो