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॥ ० ॥ ४ ॥ करियाएं लइ पोहोंचे घरें, मूरति राखे रू मांहे रे ॥ पंथें कोइ न गणे पोठीया, वाध्यो घणो मोह बाहें रे ॥ इणे० ॥ ५ ॥ समजावे नामुं शे उने, जंपे देजो मुऊ रास रे ॥ मांगो ए नामें महारे, प्रतिमा रहेशे श्रम पास रे || इ० ॥ ६ ॥ मेघो कहे लेखो राख, पण ते सबलो तिल ठाम रे ॥ गाडुं जरी चाले यल दिशें, वासो वसे गोडी गाम रे ॥ इणे० ॥ ७ ॥ सुहणे सुंर कहे गहुंली जिहां, मांमो प्रासाद मंमाण रे ॥ नाएं तिहां धन श्रीफल तजें, मीतुं जल पाहाएपनी खाण रे ॥ इणे० ॥ ८ ॥ ॥ ढाल बीजी ॥ निड्डी वेरा हुइ रही ।। ए देशी ॥
॥ हांजी उदयपाल ठाकुर तिहां, जोरावर हो खे तशी लूंगीत के ॥ हां रहो निरजय शाहजी, याद रशुं हो कहे दे महोत के ॥ धन धन गोडी जग ध णी, पोहकी पाले हो प्राजो जस पीठ के ॥ धन० ॥ १ ॥ ए क ॥ वे शिलाट देशांतरी, यह प्रेयो हो करे प्रथम तैयार के ॥ भूमि करुं प्रभु वेसवा, रहे चिहुं दिशि हो लशकर दुशीयार के ॥ धन० ॥ २ ॥ पुखतीबंधावी पीठिका, वर दिवसें हो जाणे हि नाग के ॥ सखर गंजारो शिखरशुं, मध्य मंरुप हो सवि मोह मंमाण के ॥ धन० ॥ ३ ॥ पवासणें वेठा पासजी, नरेन करी हो पूजे नवें नाव के ॥ सजल मधुरजल लहकती, वरदायी हो बंधावी वाव्य के ॥ धन० || ४ || एहवे चन्द चोराणुयें; श्रायुयोगें हो