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(१२७) मरणना दोष निवारो, जव सागरथी पार उतारा ॥ श्री हबिगानरमंमण सोहे, तिहां श्री शांति सदा मन मोहे ॥ २० ॥ पद्मसागर गुरुराज पसाया, श्री गुणसागरके मन जाया ॥ नरनारी जे चितें गावे, ते मनोवंडित निथे पावे ॥ २१ ॥ इति ॥
॥अथ॥ ॥ श्री गोडीपार्श्वनाथजी, चोढालीयुं प्रारंनः॥
॥पास जिणंद प्रसिभ सिह, गोडीपुरमंमण ॥ महिमामंदिर मोह मयण, मिथ्यात विहंमण ॥ ए कल मन अनेक रूप, अगणित गुण आगर ॥ त्रिनु वन बंधव धवलाधिंग, करुणा रस सागर ॥१॥ जिन तुम अजब सरूप सकल, कल अकल अगोचर ॥न लहे अलहे उतपति थगित, थिति नटके जो चर ॥ वृक्ष वचन- जीरण लिखित, अनुसारें जाणी॥थुणा स्वामीनिरीह पणे, सुगजो नवि प्राणी ॥ २ ॥ वि धिपद गल महेंसूरि, गलेश निर्देशे ॥ शारखाचारज अनय सिंह, सूरि नपदेशे ॥ गोत्र मीडीया उसवंश, पाटणपुरवासी ॥ शाह मेघो जेणें सात धात, जिण धर्मे वासी ॥३॥ चौद बत्रीशे फागणशुदि, बीजने जूगुवारें ॥ खेता नोडी तात मात, निज सुरूत सा रे ॥ तेणें पश्तो पास बिंब, सेहवा नरजव फल ॥ चनविह संघ हजूर हरखें, खरची धन परिगल ॥४॥ जक्ति युक्ति अति थकित चित्त, नित्य निर्मल