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(२० ) ॥ ३ ॥ एक कोडी शाठ लाख कलशें करी, वीरनो सनात्र महोत्सव करे सार ॥ अनुक्रमें वीर कुमरने लावे जननी मंदिरे, दासी प्रियंवदा जई तेणी वार ॥ माता ॥४॥ राजा सिहारथने दीधी वधामणी, दासीने दान बने बहु मान दिए मनोहार ॥ दत्रिय कुंममाहे उन्लव मंमावियो, प्रजा लोकने हरष अपार ॥माता॥५॥ घर घर श्रीफल तोरण त्राटज बांधियां, गोरी गावे मंगल गीत रसाल ॥ राजा सिक्षारथें जनम महोत्सव कयो, माता त्रिशला थई उजमाल ॥ मा ता० ॥ ६ ॥ माता त्रिशला फूलावे पुत्र पारणे ॥ ए आंकणी ।। फूले लाडकडा प्रनुजी आनंद नेर ॥ हर खी निरखिने इंशणीयो जाए वारणे, आज आनंद श्रीवीरकुमरने घेर ॥ माता ॥ ७ ॥ वीरना मुख डा उपर वारु कोटी चश्मा, पंकज लोचन सुंदर वि शाल कपोल.॥ शुकचंचू सरिखी दीसे निर्मल नासि का, कोमल अधर अरुण रंगरोल ॥माता ॥७॥
औषधि सोवनमढी रे शोने हालरे, नाजुक आन रण सघलां कंचन मोतीहार ॥ कर अंगुगे धावे वी रकुमर हर्षे करी, कांई बोलावतां करे किलकार ॥ मा ताम् ॥ ए॥ वीरने लिला. कीधो ने कुंकुम चांदलो, शोने जडित मर्कत मणिमां दीसे लाल॥ त्रिशलायें जुगतें अांजी अणियाली बेदु अांखडी, सुंदर कस्तू रीनुं टबकुं कीधुं गाल ॥ माता० ॥ १० ॥ कंचन शो ले जातनां रत्ने जडियुं पालघू, फुलावती वेला थाए