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ला कां तुमें यादरो ॥ तुमने जे जावे हो राज, कुल समजावे हो राज, किम करी आवे रे ताएयो कुंजर पाधरो ॥ ६ ॥ वचनें न जीनो हो राज, नेम नगीनो हो राज, परम खजीनो रे वाहला नारा अनूपनो ॥ व्रतशिरसामी दो राज, राजुल पामी हो राज, कहे हितकामी रे मोहन पंमित रूपनो ॥ ७ ॥ इति ॥
॥ अथ द्वितीयं श्रीनेमिनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ अंबरीयोनें गाजे हो जटियाणी वड चूए ॥ ए देशी ॥ ॥ राजुल कहे रथवालो हो, नादीरा वीरा हव तजो, कां पालो पूरव प्रीत | मूको किम वि गुनहे हो नए दीरा वीरा विलपतां, कांइ ए शी शीख्या रीत ॥रा० ॥ १ ॥ ढुंतो तुम चरणारी हो, नादीरा वीरा मोजडी, कां सांगलो यातमराम ॥ तो मुऊने नवेखो हो नणदीरा वीरा शा वती, कां नहीं ए सुगुणनां काम ॥रा० ॥ ॥ पशुचाने. क. करुणा हो, नादीरा वीरा मूकीया, कां में शो चोरी की ॥ पशुथी शुं हीणी हो, नए दीरा वीरा त्रेवडी, कांई मुऊनें विबोहो दीध ॥रा०॥३॥ एह तुम मन खोटं हो, नादीरा वीरा जो हतुं, तो पाडी कां नेहने फंद ॥ नलके ते नवि सुलके हो, नादी रा वीरा मनहुँ, कां कोडि मिले जो इंड् ॥ रा० ॥ ॥ ४ ॥ मुऊ उपर कांई थान हो, नणदीरा वीरा निर्दयी, कांइ नजर न मेलो केम | तेलीजें नहि पाये हो, न दीरा वीरा वलगती, कां नेह न गाले हेम ॥ स ॥५॥ तो कहो कि वातें हो, नगदीरा वीरा दूहव्या,
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