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(१७६ ) चारुनिरीक्षण, इनरव्यो परम जिनराज रे ॥ मोहन कहे कविरूपनो, सफल दुवां आज सवि काज रे ।। प्री० ॥ ए ॥ इति अनंत जिन स्तवनं ॥
॥अथ श्री धर्म जिन स्तवनं ॥ ॥ हारे मारे जोबनीयांनो लटको दहाडा
चार जो॥ ए देशी॥ ॥हारे मारे धर्मजिणंदमुलागी पूरण जीत जो,जी वडलो ललचायो जिनजीनी उलगें रेला ॥ हारे मुने थाशे कोश्क समय प्रनुजी प्रसन्न जो, वातडली तव माहारी सवि थाशे नगें रेलो ॥ १ ॥ हारे को मुरिजननो नंनेखो माहारो नाथ जो, लाशे नही क्यारें कीधी चाकरी रेलोटांरे माहारा स्वामी सरिखो कुण ने उनीयांमांहि जो, जश्ये रे जिम तेहने घर याझा करी रेलो॥॥ हारे जस सेवासेंती स्वारथ न होवे सिम जो, नाली रे शी करवी तेहथी गोठडी रे लो॥ हारे कोई जूतुं खाये ते मीठाश्ने माट जो, कोइरे परमारथविण नही प्रीतडी रेलो॥३॥ हारे प्र नु अंतरजामी जीवन प्राण आधार जो, वाह्यो रे न वि जाणे कलियुग वायरो रे लो॥ हारे माहारा लायल नायक नगत वत्सल जगवान जो, वारु रे गुणकेरो सा हिब सायरो रे लो ॥ ४ ॥ हारे प्रनु लागी मुझने ताहरी माया जोर जो, अलगारे रह्याथी होय । सिंगलो रे लो ॥ हारे कुण जाणे अंतर्गतनी विण महाराज जो, हेजें रे हसी बोलो बगंमी आमलो
ताहरी मायानो ॥ हार
बोलो बॉम