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(१४) नवटे हो करारी बीट के ॥ ५ ॥ आ॥ नायक न जरें निवाजीयें, हवे लाजीयें हो करता रस लूंट के । अध्यातम पद आपतां, कांश नही पडे हो खजाने खूट के ॥ ६ ॥ अ०॥ जिम तुमें तस्या तिम तारजा,
वेसे हो तुमने का दाम के॥ नदी तारो जो मुझने, तो किम तुम हो तारक कहेशे नाम के ॥ ७ । अ॥ दं तो जिन रूपस्थथी, रहुँ होइ हां हो अहोनिश अनुकूल के॥ चरण तजी जय किहां, ले मादारी हो वातडली, मूल के ॥ ७ ॥ ॥ अष्टापद पदमा करे, अन्य तीरथ हो जा- जिम हेड के॥ मोहन कहे कवि रूपनो, विण उपशम हो नवि मूकुं केड के ॥ ॥ ए ॥ अ० ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंतजिन स्तवनं ॥ ॥ सुमति सदा दलमें धरो ॥ ए देशी ।। ॥ अनंत जिणंद अवधारीयें, सेवकनी अरदास ।। जिनजी॥ अनंत अनंत गुण तुम तणा, सांजरे सा सो सास ॥ जि ॥ १ ॥ सुरमणिसम तुम सेवना, पामी में पुण्य पमूर ॥ जि०॥ किम प्रमाद तणे वशे, मूकुं अधविण दूर ॥ जि ॥ ॥ जगति जुगति म नमें वस्यो, मनरंजन महाराज ॥ जि० ॥ सेवकनी तुमने अजे, बांह ग्रह्यानी लाज ॥ जि० ॥३॥ मुह मीठा धीठा हीये, तेहवो नहि हूं दास ॥जि०॥ साचो सेवक संनवी, कीजें ज्ञान प्रकाश ॥ जि० ॥ ४ ॥