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(१७४) जिनराय ॥ आ ॥ नखे मन नमहे घणे जी॥ ७॥
॥ अथ श्री मुमति जिन स्तवनं ॥ ॥ वारी हुँ उदयापुर रणे ॥ ए देशी॥ ॥ महारा प्रजुजीगुंवाधी प्रोतडी, ए तो जीवन ज गदाधार ॥ सनेही ॥ साचो ते साहिब सांबरे, खी। माहे कोटिक वार ॥ सनेही ॥ १ ॥ वारी हूँ मुमति जिणंदनी ॥ ए अांकगी॥प्रनु थाडाबोला ने गुण घगा, एतो काज अनंत करनार ॥ स० ॥ नग जेहनी जेवडी, फल तेहा तस देनार ॥ स ॥ २॥ वा० ॥ प्रनु अति धीरो लाजें जयो, जिम सिं च्यो सुरुत घनसार ॥ स । एकज करुणालेहेरमां, सुनिवाजे करे निहाल ॥ स० ॥३॥ वा ॥ प्रनुनव स्थिति पाकें नक्तने, प्रनु कहे त्यो सुपसाय ॥ स० ॥ ऋतु विण कहो किम तरुवरें, फल पाकीने सुं दर थाय ॥ स ॥ ॥ वा ॥ अति नूरख्यो पण गुं करे, कांश बेदु हाथे न जमाय ॥ स ॥ दास त एगी उतावलें, प्रनु किणविध रीऊयो जाय ॥ स० ॥ ॥ ५ ॥ वा ॥ प्रनु लखित होय तो जानीयें, मन मान्यो माहाराज ॥ स० ॥ फल तो सेवाथी संपजे, विण खणण न नांजे खाज ॥ स ॥ ६ ॥ वा० ॥ प्रनु वीसास्या नवि वीसरो, साहामुं अधिक होवे ने नेह ॥ स० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो, मुफ वालो डे जिनवर एह ॥ सं० ॥ ७ ॥ इति ॥