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जल गंजीर, कीर्त्ति गाजे बे ॥ गजपुर नयर सोहामणुं, घणुं दीपे बे || विश्वसेन नरिंदनो नंद, कंदर्प कीपे बे ॥ १ ॥ चिरा मातायें वर धस्यो, मन रंजे बे ॥ मृगलंबन कंचन वान, जावत जंजे ले ॥ २ ॥ प्रनुं लाख वरस चोथे जागें, व्रत लीधुं वे ॥ प्रभु पाम्या केवल ज्ञान, कारज सीधुं बे ॥ ३ ॥ धनुष चालीशनुं ईशनुं, तनु सोहे बे ॥ प्रभु देशना धुनि वरसंत, नवि पडिवो बे ॥ ४ ॥ नक्तवत्सल प्रभुता नली, जन तारे
॥ बूतां नवजल मांहि, पार उतारे बे ॥ ५ ॥ श्री सु मति विजय गुरुनामथी, दुःख नासे बे ॥ कहे रामवि जय जिन ध्यान, नवनिधि पासें बे ॥ ६ ॥ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री कुंथुनाथ स्तवनं ॥ || देशी रसीयाना गीतनी ते ॥ रसीया कुंथु जिने सर केसर, चीनी देहडी रे लो || मारा नाथजी रे लो ॥ रसीया मन पंडित वर पूरण, सुरतरु वेलडी रे लो ॥ महारा० ॥ रसीया अंजन रहित निरंजन, नाम हइए धरो रे लो ॥ महारा०॥ रसीया जुगतें करी मन जगतें, प्रभु पूजा करो रे लो ॥ १ ॥ महारा ॥ रसीया श्री नंदन यानंदन, चंदनथी सिरे रे लो || महारा० ॥ रसीया ताप निवारण तारण तरण तरीपरें रे लो ॥ महा रा० ॥ रसीया मनमोहन जग सोहन, कोह नहि कि स्यो रे जो ॥ महारा० ॥ रसिया कूडा कलियुग मांहे, अवर न को इस्यो रे जो ॥ महारा० ॥ २ ॥ रसीया गुण संचारी जावं, बलिहारी नाथनें रे लो ॥ महारा॥
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