________________
(१५७) त्रेवीश मिव्या धूतारडा,तेहना वली नव नवा रंग ।। श्री जिन॥अह निश तेरो हुँ जोलव्यो, न धयो प्रनु साथें रंग ॥३॥ श्री जिन ॥ प्रनु दरशनें तरसे घj, जिन मुज मनडुं दिन रात ॥ श्री जिन ॥ पण दश त्रण आमा रहे, जे नीच घणुं कमजात ॥४॥ श्री जिन ॥ कूडो कलियुग आजनो, बहु गामरीयो पर वाह ॥ श्री० ॥ ताहरूं रूरा न उलखे, नही शुद्ध धर मनी चाह ॥ ५ ॥ श्री० । प्रनु दरशन विण जीव डा, करता दीसे व्यवहार ॥ श्री० ॥ तेणे नरमे नूला घणा, प्रनु दोहिलो लोकाचार ॥ ६ । श्री जिन ॥ वरस बहोंतेर लख ान, नोरी सीतेर धनुष्य तन सार ॥ श्री० ॥ श्री रामविजय करजोडीने, कहे न तारो नवपार ॥ ७ ॥ श्री जिन.॥ ॥ इति ॥
॥अथ श्री विमलनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ फूल बारीयां बारीयां शुं करो, फूल जोजन करता ॥
॥जाउ रे ॥ बारीयां फूलजी॥ ए देशी॥ ॥ जिन विमलवदन रतीयामj, जाणे कनक कमलनो राय रे ॥ विमल जिणंदजी ॥ जिन अधर अमीरस नमिनो, प्रतिबिंबित बिंब सुहाय रे ॥१॥ विमल जिणंदजी ॥ जिन अनुपम रूपनी रेखमां, नवि आवे सुरना इंदरे ॥ विमल ॥ जिन मुख टी को नीको बन्यो, मानुं नग्यो उज्ज्वल चंद रे ॥ २ ॥ विमल ॥ जिन दाडिम कली जेम उपती, अति दीपे दंतनी उन रे ॥ विमल ॥ ए अरुण अधर बबीथी