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(१५२) सुखकामी के ॥ निर्मल काय रे ॥ ३ ॥ तुंतो नक्त वत्सल जय टाने के ॥ सु० ॥ तुं तो त्रण नुवन अ जूयाले के ।। जिम दिनराय रे ॥ तुं तो मुनिजन मा नस दीवो के ॥ सु० ॥ अविचल ध्रुवमंगल चिरंजी वो के ॥ जिम गिरिराय रे ॥ ४ ॥ प्रनुजीनी वाणी अमीरस मीठी के ॥ सु०॥ जिनजीनी मोहन मूर्ति दीती के ॥ अति सुख थाय रे ॥ श्री गुरु सुमतिवि जय कविराया के ॥ सु० ॥ सेवकः रामविजय गुण गाया के ॥ जयो जिन राय रे ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पद्मप्रनजिन स्तवनं । फूंबखाडानी देशी॥ श्री पद्मप्रन जिन सेपियें रे, शिवसुंदरी जरतार ॥ कमल दल अांखडीयां ॥ मो हनगुं मन मोही रयुं रे,रूप तणो नहिं पार ॥ जमुह धनु वांकडियां ॥ १ ॥ अरुण कमलसम देहडी रे, जगजीवन जिनाय।।वयण रस शेलडियां॥त्रीश पूरव लख पाक रे,सारे वंडित काज ॥ मोहन सुरवेल डि यां॥२॥ सहियरो सवि टोलें थरे, शोले सजी शण गार ॥ मिलि सखि शेरडियां ॥ गुण गातो घुमरी दी ये रे, करी चूडी खलकार ॥ कमलमुख गोरडियां॥३॥ मात सुसीमा नरें धस्यो रे, मुफ दिलडामांहे देव ॥ वस्यो दिनरातडियां ॥ कोसंबी नयरी तणो रे, नाथ नमो नित्यमेव ॥ सुणो सखि वातडीयां ॥ ॥ धनुष अढीशय शोनिती रे,नंच पणे जगदीश ॥ नमो साहे