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(१५१) रथ मातनो रे, संवर नूपति कुल शणगार के ॥ प्र० ॥ धनु शत साडा त्रणनी रे, प्रजुजीनी दीपे देह थ पार के ॥प्र० ॥ ४ ॥ पूरव लाख पचासनुं रे, पाली प्राय लयुं गुन गण के ॥प्र॥ नयरी अयोध्यानो राजीयो रे,दरिसण नाण रयण गुण खाण के ॥प्र० ॥ ५ ॥ सेवो समरथ साहिबो रे, साचो शिवरमणीनो साथ के ॥प्र। मुफ हीयडा मांहि वस्यो रे, वाहा लो तीन नुवननो नाथ के॥ प्र० ॥ ६ ॥णी परें जिन गुण गवतां रे, लहिएं अनुनव सुख रसात के ॥प्र० ॥ रामविजय प्रनु सेवता रे, करतां नित नित मंगलमान के ॥ प्र० ॥ ७ ॥ इति ॥
॥अथ श्री सुमतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ गरबो कोणेने कोराव्यो के, नंदजीना लाल रे॥ ए देशी ॥ पंचम सुमति जिनेसर सामी के ॥ सुण जिन राय रे॥ तुमथी नवनिधि ऋदि में पामी के॥ शिव सुख दाय रे ॥ तुं तो पावन परम नगीनो के ॥सु ॥ अहनिश समता रसमां नीनो के ॥ सुरगुस गाय रे ॥ १ ॥ मंगला मावडीयें प्रनु जाया के ॥ सु॥ बप्पन दिशि कुंमरी दुलराया के॥ हरख न माय रे ॥ ताहरूं मुख जखमीनो वीरो के ॥ सु० ॥ तुं तो मेघनृपति कुल हीरो के ॥ हरि नत पाय रे ॥ २ ॥ त्रणशे धनुषनी नंची काया के ॥ सु०॥ चा सीश पूरव लाखनुं आयु के ॥ नागर राय रे ॥ तहा री सेव करे सुरसामी के॥ सु० ॥ तुंतो शिव सुंदरी