________________
( १२८ )
पर नवि हाथ ॥ मे ॥ दीक्षा अवसर दीजियें रे हां, शिर उपर जगनः ॥ मे० ॥ ५ ॥ इम वलवलती राजुल गइ रे हां, नेम कने व्रत लीध ॥ मे० ॥ वाचक यश कहे प्रमियें रे हां ए दंपती दोय सि६ ॥ मे० ॥६॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवनं ॥
|| देखी कामनी दोइ ॥ ए देशी ॥ वामा नंदन जिनवर मुनिमांहें वडो रे, के मुनिमांहे वडो ॥ जिम सुरमांहि सोहे सुरपति परवडो रे के । सुर ॥ निम गिरमांहि सुराचल मृगमांहे केसरी रे ॥ मृग० ॥ जिम चंदन तरुमांहि सुनटमांहिं शूरपरि रे ॥ १ ॥ सु० ॥ नदीय मांहि जिम गंग अनंग सुरूपमां रे ॥ अनं० ॥ फूलमांहिं अरविंद नरत पति नूपमां रे || नर० ॥ ऐरावण गजमांहिं गरुड खगमां यथा रे ॥ गरुड० ॥ तेजवंतमांहि जाण वखाणमांहिं जिन कथा रे ॥ व० ॥ २ ॥ मंत्र मांहि नवकार रत्नमांहि सुरमणि रे ॥ २०॥ सागरमांहि स्वयं रमण शिरोमणि रे ॥ रम० ॥ शुक्ल ध्यान जिम ध्यानमां प्रति निर्मल पणे रे ॥ ति० ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक इम नऐ रे ॥ सेवक० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री वर्धमान जिन स्तवनं ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ गिरुया रे गुण तुम तथा, श्री वर्धमान जिनराया रे ॥ सुणता श्रवणें मी ऊरे, माहारी निर्मल थायें काया रे ॥ गि० ॥ १ ॥ तुम गुण गए। गंगा जलें, हुँ जीली निर्मल थानं रे ॥ अवर न