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उत्तम निज महिमा वधे ॥ सा० ॥ दीपे उत्तम धाम रे ॥ गु० ॥ ४ ॥ नदक बिंड सायर जल्यो || सा० ॥ जिम होय अखय अनंग रे ॥ गु० ॥ वाचक यश कहे प्रभु गुणें ॥ सा० ॥ तिम मुफ प्रेम प्रसंग रे ॥ गु० ॥ ५ ॥
॥ अथ श्री धर्मनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ बेडले चारघणो वे राज, वांता केम करो बो ॥ देश ॥ ॥ ॥ थाशुं प्रेम बन्यो बे राज, निरवदेशो तो लेखे ॥ रागी थे बोनीरागी, प्रण जुडते होये हांसी ॥ एक पखो जे नेह निवहिशो, तेहमांशी साबाशी ॥यां० ॥ १ ॥ न्रीरागी सेवे कांइ होवे, इम मनमां नवि या शुं ॥ फले अचेतन पण जिम सुरमणि, तिम तुम नक्ति प्रमाणुं ॥ था० ॥ २ ॥ चंदन शीतलता उपजावे, अनि ते शीत मिटावें ॥ सेवकनां तिम डख गमावे, प्रभु गुण प्रेम स्वनावें ॥ था० ॥ ३ ॥ व्यसन उदय जे जलधि अणु हरे, शशीनुं तेज संबंधें ॥ अणुसंबंधें कुमुद अणु हरे, शुद्ध स्वनाव प्रबंधे ॥ था० ॥ ४ ॥ देव अनेरा तुमची बोटा, थें जगमां अधिकेरा ॥ यश कहे धर्म जिनेश्वर यांशुं, दिल मान्या है मेरा ॥ था॥५॥ ॥ अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥
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॥ रह्यो रे आवास ज्वार ॥ ए देशी ॥ धन दिन वेला धन घडि तेह, अचिरारी नंदन जिन जदि ने शुंजी || लहि रे सुख देखी मुखचंद, विरह व्य थानां दुःख सवि मेनुं जी ॥ १ ॥ जांएयो रे जेणें तुऊ