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गंगाजी || सेवो० ॥ १ ॥ अवसर पामी खालस क रशे, ते मूरखमां पेहेलोजी ॥ नूख्याने जेम घेवर देतां, हाथ न मांगे घेलोजी ॥ सेवो० ॥ २ ॥ नव अनंत मां दर्शन दीठं, प्रभु एहवा देखाडेजी ॥ विकट ग्रंथ जे पोलि पोलियो, कर्म विवर उघाडेजी ॥ सेवो० ॥ ३ ॥ तत्त्व प्रीति करि पाणी पाए, विमला लोके यांजी जी || लोयण गुरु परमान्न दिए तव, नर्म ना खे सवि जांजी जी ॥ सेवो० ॥ ४ ॥ जर्म जागो तव प्रभुशुं प्रेमें, वात करुं मन खोलीजी ॥ सरल तणे जे हरडे यावे, तेह जगावे बोलो जी ॥ सेवो ॥ ५ ॥ श्री नय विजय विबुध पय सेवक, वाचक. यश कहे साचुंजी | कोडि कपट जो कोई दिखावे, तो प्रभु वि नहिं राचुंजी ॥ सेवो० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री अनंत जिन स्तवनं ॥
॥ साहेजडियां ॥ ए देशी ॥ श्री अनंत जिनशुं करो || साहेलडियां ॥ चोल मजीवनो रंग रे ॥ गुण वेलडियां ॥ साचो रंग ते धर्मनो । साहेलडियां ॥ बीजो रंग पतंगरे || गुण वेलडियां ॥ १ ॥ धर्म रंग जीरण नही ॥ सा० ॥ देह ते जीरण थाय रे ॥ गु० ॥ सोनुं ते विसे नहिं ॥ सा० ॥ घाट घडामण जाय रें ॥ गुo॥ २ ॥ त्रांबुं जे रस वेधिनं ॥ सा० ॥ ते होय जाचुं हेम रे ॥ गु० ॥ फरित्रांबूं ते नवि हुए ॥ सा० ॥ एहेवो जग गुरु प्रेम रे ॥ गु० ॥ ३ ॥ उत्तम गुण अनुरागयी || सां० ॥ लहियें उत्तम ठाम रे ॥ गु० ॥