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(ए ) स नमाडिय ॥ रूवें मयण अनंग करवि, मेव्हि न निर धाडिय ॥धीरम मेरु गंजीर सिंधु, चंगम चयचाडिय ॥ ४ ॥ पेखवि निरुवम रूव जास, जिण ऊंपे किंचिय ॥ एकाकी किल नीत ब, गुण मेव्हा संचिय ॥ अहवा निचे पुत्व जम्म, जिवर इण अं चित्र ॥ रंना पनमा गवरी गंगा, रतिहा विधि वंचिय ॥ ५ ॥ नहिं बुध नहिं गुरु कवि न कोइ, जसु श्रा गल रहि ॥ पंचसया गुगपात्र बात्र, हीं परवरि
॥ करय निरंतर यज्ञकर्म, मिथ्यामति मोहिय ॥ ए बल होसे चरम नाण, दंसह विसोहि ॥ ६ ॥ ॥वस्तु॥जंबूदीवह जंबूदीवहनरह वासंमि, खोणीतल मंमणो॥मगध देस सेणिय नरेसर, धण वरगुब्बर गा तिहां ॥ विप्प वसे वसुनू सुंदर, तसु नका पुहवी सयल, गुण गण रूव निहाण ॥ ताण पुत्त विद्यानि ल, गोयम अतिहि सुजाण ॥ ७ ॥ जषा ॥.चरम जिरोसर केवलनाणी, चनविह संघपश्छा जाणी॥ पावापुर सामी संपत्तो, चनविह देवनिकायें जुत्तो ॥ ७ ॥ देवें समवसरण तिहां कीजें, जिण दीठे मि थ्यामति बीजें ॥ त्रिनुवनगुरु सिंहासण बश्शो, तत विण मोह दिगंतें पश्ो ॥ ए॥क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा ॥ देवउंहि आकासें वाजी, धर्म नरेसर आव्यो गाजी ॥१०॥ कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसह इंश्ज मागे सेवा ॥ चामर उत्रं सिरोवरि सोहे, रूपें ते जिणवर