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॥ मे० ॥ एपल संख्याता कह्या, श्री जगदीश स दैव ॥ मे० ॥ कं० ॥ १४ ॥ जलमां जीव कहा घणा, संख्य असंख्य अनंत ॥ मे० ॥ नील फूल तिहां कपजे, अग्नि प्रजाने जंत ॥ मे० ॥ कं० ॥ ॥ १५ ॥ तमा पीतां थकां ए बक्काय हणाय ॥ मे० ॥ ज्योति घटे नयणा तणी, श्वासें पिंग न राय ॥ ० ॥ ० ॥ ६ ॥ घडी दोय जे व्रत करो. मे मेवो श्रीभगवान ॥ ये० ॥ दया धर्म जाली करी, सेवो चतुर सुजाण ॥ मे० ॥ कं० ॥ १७ ॥ चतुर विचारी समजीयें, धरीएं धर्मनुं ध्यान मे० ॥ श्रा नंद मुनि एम उच्चरे, ते हे कोडि कल्याण ॥ मे० ॥ कं० ॥ १८ ॥ इति श्री तमाकूनी सजाय संपूर्ण ॥ ॥ अथ चोवीशजिन स्तवनं ॥
॥ प्रह समे नाव घरी घणो, प्रणमुं मन रे प्राणं दा ॥ धन वेला धन ते घडी, निरखुं प्रभु मुख चंदा ॥ प्र० ॥ १ ॥ कूपन अजित संभव जला, अनिनं दन वं ॥ सुमति पद्मप्रन जिनवरा, श्रीसुपार्श्व जिनेंडु ॥ प्र० ॥ २ ॥ चंप्रन सुविधि नमुं, शीतल श्रेयांस ॥ वासुपूज्य विमल प्रभु, अनंत धर्म जिनेश ॥ प्र० ॥ ३ ॥ शांति कुंथु र जिनवरा, ए त्र चक्री कहीजें ॥ मल्ली मुनि सुव्रत प्रभु, नमि नेम नमीजें ॥ प्र० ॥ ४ ॥ पार्श्व वीर नित्य वंदिएं, एहवा जिन चोवीश ॥ ज्ञानविमल सूरि प्रणमतां नित्य होए जगीश ॥ प्र० ॥ ५ ॥ इति ॥