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________________ (21) स्थितिको नहीं पहुंच सकता है, जब तक कि दर्शन ज्ञान और चरित्र रूप रत्नत्रयको नहीं पा लेता है।। सम्यग्दर्शनका अर्थ यह नहीं है कि, अपना मरण होनेके पीछे दूसरी स्थितिमें जन्म लेना पड़े (?) किन्तु यह है कि सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेके पीछे सम्यक्चारित्र प्राप्त हो जाता है, तो फिर किसी भी नीची गतिमें गये विना अपने स्वभावसे ही ऊंची गतिमें चढ़ जाता है। यह व्याख्यान मैंने किसी प्रकारके रूपक तथा अलंकारके विना साफ साफ शब्दोंमें कहा है (क्योंकि उपस्थित समा विद्वानोंकी है) परन्तु जब अज्ञानी लोगोंके समक्ष ये सब सत्य तत्त्व कहना पड़ते हैं, तब कुछ न कुछ अलंकार अथवा दृष्टान्तादि देनेकी आवश्यकता होती है, और पीछे उनका यथार्थ अभिप्राय समझाया जाता है / इति शुभम् / KHANNEL
SR No.010284
Book TitleJain Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages23
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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