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________________ जन पाठावली ) ऐसी व्यवस्था को अपने स्वार्थ के लिए भग करना ‘विरुद्धरज्जाइकम्मे, (विरुद्धराज्यातिक्रम) नामक अतिचार है ! (४) छोटे-मोटे माप-नौल से लेन-देन करना होनाधिकमानोन्मान या कूडतोले कूडमाणे' नामक अतिचार है । (५) असली के बदले नकलो वस्तु चलाना, एक वस्तु दिखलाना और दूसरी दे देना या वस्तु में मिलावट कर देना 'तप्पडिरूवगववहारे' (तत्प्रतिरूपकव्यवहार) दोष कहलाता है । इन पाच दोषो में ऊपर बतलाई हुई सभी प्रकार की चोरी का समावेश हो जाता है। ऐसा समझकर कभी किसी भी प्रकार की चोरी नहीं करनी चाहिए । अस्तेयवतधारी को सूचना : (१) किसी भी चीज की तरफ ललचाने की आदत ___ नही रसना चाहिए। (२) अपनी मिहनत से जो कुछ मिले उमीमे सतोप करना। (३) सग्रह करने की आदत पर और अपनी आवश्यकतओ पर नियंत्रण रखना चाहिए। (४) कुटुम्ब, समाज और देश के प्रति अपनी शक्ति के अनुगार अपना कर्तव्य पालन करना चाहिए। (५) जब तक लोभ दूर न हो तव तक अपने काम की बस्तु वद ही, नीति के मार्ग से प्राप्त करना चाहिए । MyINE
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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