SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - तृतीय भाग) (१५५ मत्री शकडाल की मृत्यु हो गई। लम्वी श्मशान यात्रा निकली। कोशा के महल के नीचे से शव गुजरा। इस समय स्थूलभद्र कोशा का संगीत सुन रहा था। रास्ते में लोगो की आवाज सुनाई दी। इस आवाज से अपने मजे में बाधा पड़ी देखकर वह बड़-बडाने लगा लोग कितने मूर्ख हैं । किलविलकिलविल मचा रहे हैं। इस तरह कहता हुआ वह छज्जे मे आया। अपने भाई श्रयक को अर्थी में लगा देखा। पूछताछ करने पर पता चला कि पिताजी परलोक सिधार गये हैं यह जानकर स्थूलभद्र चौंक उठा। उसका हृदय काँपने लगा । सोचा-'हाय ! मै कितना अधर्मी हूँ ? पिताजी का शव श्मशान में जा रहा है और में विषय-रस मे डूबा हूँ। धिक्कार है मुझे ।' बहुत सी समर्थ आत्माएँ ऐसी होती हैं, जो एक ही घटना से जाग उठती है । स्थूलभद्र उन्ही मे से थे । वह जाग उठे। वह कोशा के महल से बाहर निकल कर शव के पास गये । अर्थी में जुडे । दाहंक्रिया में भाग लिया। नन्द राजा को तो अब मालूम हुआ कि शकडाल के दूसरा लडका है । राजा ने शकडाल का मन्त्री पद स्थलभद्र को सौंपने की इच्छा प्रकट की । लेकिन स्थलभद तो जाग चुके थे। दुनिया के राग-रगो की ओर से उनका चित्त हट गया था । उन्होंने मत्री का पद स्वीकार नहीं किया। सभूतिविजय नामक मुनिराज से चारित्र अगीकार करके उन्होने अपने जीवन की दिशा बदल डाली। उन्होने उसी तरफ अपनी शक्ति मोड दी।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy