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________________ तृतीय भाग) १५३ सर हो नही रह गई थी। भले भले लोग भी कोशा की तरफ ललचाते थे । - जिसने कोशा का नृत्य नही देखा वह अपने मापको अधन्य मानता। स्थूलभद्र इसी कोशा से नृत्यकला तीखने लगा। स्थूलभद्र को नृत्य की वडी धुन लगी। नृत्य की ओर उसकी खूब रुचि बढी। रात-दिन वह इसी विचार में डूबा रहता । कोशा को तो अनेक ग्राहको को रिझाना पड़ता था । रह ज्यादा फुर्सत कैसे पाती ? स्थूलभद्र को नृत्य सीखना था रह कोशा के पास जाकर भी सीखता था। माता-पिता को उसका वहाँ जाना अच्छा नहीं लगता। लेकिन पुत्र के कला म को देखकर और बडा लडका है. इस बात का विचार करके वे ज्यादा कुछ कह नही सकते थे । स्थूलभद्र कभी-कभी रात में भी कोशा के घर पर ही रह जाता था। इस तरह कई वर्ष व्यतीत हो गये। । अब स्यलभद्र के शरीर मे जवानी आ गई थी। अभी तक स्थूलभद्र कोशा के यहाँ कला का पुजारी था। अव वह उसके शरीर की सुन्दरता पर भी ललचाया। कोशा का प्रेम भी स्थूलभद्र पर बढने लगा। स्थूलभद्र भूल गया। कोशा भी भूली। शिक्षिका और शिष्य के बीच की पवित्रता समाप्त हो गई। दोनो पति-पत्नी की तरह रहने लगे। कोशा के पास ग्राहक आते, पर धन्धे मे उसका चित्त
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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