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आसन-ध्यान तथा तप आदि के लिए बैठने तथा खडे होने
का स्थान या विधि । आसादन-सम्यगदर्शन की विराधना । आत्रव-मन, वचन, शरीर की प्रवृत्ति के कारण शुभाशुभ
कमों का आगमन । आस्त्रव-अनुप्रेक्षा-मानसिक तथा शारीरिक मोहजन्य
प्रवृत्तियो की हेयता का चिन्तन । आहरण-अप्रतीत अर्थ की प्रतीति ; पुद्गल-पिण्ड ग्रहण करने
की क्रिया। आहार-१ पौद्गलिक शरीर, २. भोजन । आहारक-वर्गणा-आहारक शरीर रूप परिणमित पुद्गल
स्कन्ध । आहारक शरीर-चौदह पूर्वी या केवल-ज्ञानी के पास जाने के
लिए बनायी जाने वाली शरीर-रचना। आहारक-समुद्घात-आहारक शरीर की रचना के लिए
आत्म-प्रदेशो का वहिर्गमन ।। आहार-पर्याप्ति-भुक्त आहार को मल और रस के रूप में
बदलने की शक्ति। आहार-संज्ञा-आहार की अभिलाषा।
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