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वृत्ति-परिसंख्यान-वृत्ति-संक्षेप ; अभिग्रहपूर्वक आहार-चर्या । वेद-मैथुन-क्रिया के प्रति मुग्ध-भाव ; सुख-दुःख का अनुभव ;
पदार्थ-विज्ञान का विशेषज्ञ । वेदना-समुद्घात-शारीरिक संतप्त अवस्था में आत्म-प्रदेशो
का वहिर्गमन फैलाव । वेदनीय-कम-विशेष ; सुख-दुःख का कारणभूत कर्म । वेयावञ्च-यावृत्य , साधु की परिचर्या । वेतरणी-नरक की एक भयंकर नदी । वैक्रिय-विशिष्ट क्रिया से निर्मित शरीर का वाहक देव, नारक
या सिद्धि-सम्पन्न पुरुष । वैनियिकी बुद्धि-विनयपूर्वक अध्ययन करने से समुत्पन्न मति । वैमानिक-विमानी में रहने वाले देव ; देखें-विमान। वैयावृत्य-सेवा-सुभूपा , रोगी, ग्लान एवं परिश्रान्त व्यक्ति
या माधु की स्नेहमाहित सेवा। चैराग्य-रागरहित अवस्था । व्यंजन-शब्द का प्रकाशन ; इन्द्रियों के द्वारा पदार्थ-बोध या
पदार्थ-प्राप्ति ; अवग्रह का एक भेद । ध्यंजन-नय-शब्द के भेद से वस्तु-भेद की ग्राहकता।
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