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________________ जैन परम्परा का इतिहास [४५ २७-आचार्य नागार्जुन ३०--आचार्य लौहित्य २८-आचार्य गोविन्द ३१-आचार्य दूष्यगणि २६-आचार्य भूतदिन्न ३२-आचार्य देवद्धिगणि सम्प्रदाय भेद (निह्नव विवरण) विचार का इतिहास जितना पुराना है, लगभग उतना ही पुराना विचारभेद का इतिहास हे । विचार व्यक्ति-व्यक्ति की ही उपज होता है, किन्तु सघ मे रुड होने के बाद सघीय कहलाता है। तीर्थकर वाणी जैन-सघ के लिए सर्वोपरि प्रमाण है । वह प्रत्यक्ष दर्शन है, इसलिए उसमे तर्क की कर्कशता नही है। वह तर्क से बाधित भी नही है । वह सूत्र-रूप है। उसकी व्याख्या मे तर्क का लचीलापन आया है। भाष्यकार और टीकाकार प्रत्यक्षदर्शी नही थे। उन्होने सूत्र के आगय को परम्परा से समझा। कही समझ में नहीं आया, हृदयगम नही हुआ तो अपनी युक्ति और जोड़ दी। लम्बे समय मे अनेक सम्प्रदाय बन गए। श्वेताम्बर और दिगम्बर जैसे शासन भेद हुए। भगवान् महावीर के समय मे कुछ श्रमण वस्त्र पहनते, भी कुछ नही पहनते । भगवान् स्वय वस्त्र नही पहनते थे। वस्त्र पहनने से मुक्ति होती ही नही या वस्त्र नही पहनने से ही मुक्ति होती है, ये दोनो बाते गौण है---मुख्य बात है---राग द्वेप से मुक्ति । जैन परम्परा का भेद मूल तत्त्वो की अपेक्षा जारी वातो या गोण प्रश्नो पर अधिक टिका हुआ है। ___ गोगालक जैन-परम्परा से सर्वथा अलग हो गया, इसलिए उसे निह्नव नहीं माना गया। थोडे से मत-भेद को लेकर जो जैन शासन से अलग हुए, उन्हें निह्नव माना गया । बहुरतवाद (१) जमाली पहला निह्नव था । वह क्षत्रिय-पुत्र और भगवान् महावीर का दामाद था । माँ-बाप के अगाध प्यार और अतुल ऐश्वर्ग को ठुकरा वह निर्गन्य वना । भगवान् महावीर ने स्वय उसे प्रव्रजित किया । पाँच सौ व्यक्ति उसके साथ थे। मुनि जमाली अव आगे बढने लगा। ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना मे अपने-आप को लगा दिया। सामायिक आदि ग्यारह अग
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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