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________________ जैन परम्परा का इतिहास [१२१ सैकड़ो को सख्या मे फैले हुए थे। 'सिया हत नाम ए ना सिर' का लेखक लिखता है कि इस्लाम धर्म के कलन्दरी तबके पर जैन-धर्म का काफी प्रभाव पडा था । कल-दर चार नियमो का पालन करते थे-साधुता, शुद्धता, सत्यता और दरिद्रता । वे अहिंसा पर अखण्ड विश्वास रखते थे३२ । महात्मा ईसु क्राइस्ट जैन सिद्धान्तो के सम्पर्क मे आये और उनका प्रभाव ले गए थे। रामस्वामी अय्यर ने इस प्रसंग की चर्चा करते हुए लिखा है"यहूदियो के इतिहास लेखक 'जोजक्स' के लेख से प्रतीत होता है कि पूर्वकाल में गुजरात प्रदेश द्राविडो के तावे मे था और गुजरात का पालीताणा नगर तामिलनाड प्रदेश के अधीन था । यही कारण है कि दक्षिण से दूर जाकर भी यहूदियो ने पालीताणा के नाम से ही "पलिस्टाइन" नाम का नगर वसाया और गुजरात का पालीताणा ही पैलिस्टाइन हो गया । गुजरात का पालीताणा जैनो का प्राचीन और प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। प्रतीत होता है कि ईसू स्त्रीष्ट ने इसी पालीताणा मे आकर वाईविल लिखित ४० दिन के जन उपवास द्वारा जैन शिक्षा लाभ की थी।" जैन धर्म का प्रसार अहिंसा, शान्ति, मैत्री और संयम का प्रसार था । इसलिए उस युग को भारतीय इतिहास का स्वर्ण-युग कहा जाता है । पुरातत्त्व-विद्वान् पी० सी० राय चौधरी के अनुसार-"यह धर्म धीरे-धीरे फैला, जिस प्रकार ईसाई धर्म का प्रचार यूरोप मे धीरे-धीरे हुआ। श्रेणिक, कुणिक, चन्द्रगुप्त, सम्प्रति, खारवेल तथा अन्य राजाओ ने जैन-धर्म को अपनाया। वे शताब्द भारत के हिन्दू शासन के वैभवपूर्ण युग थे । जिन युगो मे जैन-धर्म सा महान् धर्म प्रचारित हुआ3४।" कभी-कभी एक विचार प्रस्फुटित होता है-जैन धर्म के अहिंसा-सिद्धान्त ने भारत को कायर बना दिया, पर यह सत्य से दूर है। अहिंसक कभी कायर नही होता। यह कायरता और उसके परिणामस्वरूप परतन्त्रता हिसा के उत्कर्ष से, आपसी वैमनस्य से आई और तब आई जब जैन-धर्म के प्रभाव से भारतीय मानस दूर हो रहा था। भगवान महावीर ने समाज के जो नैतिक मूल्य स्थिर किए, उनमे ये बातें सामाजिक और राजनीतिक दृप्ट से भी अधिक महत्वपूर्ण थी। पहिली सकल्प
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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