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________________ ६२1 जैन परम्परा का इतिहास धातु-रत्नाकर के सकलन में बहुत बड़ा प्रयत्न किया। इस सदी में दूसरे भी बहुत से प्रयत्न सस्कृत-साहित्य की रचना के लिए हुए । जैनो ने केवल साहित्य-प्रणयन के द्वारा ही सस्कृत के गौरव को नही बढाया किन्तु साहित्य को सुन्दर अक्षरो में लिपिबद्ध करके पुस्तक भण्डारो में उसकी सुरक्षा करते हुए सस्कृत की धारा को अविच्छिन्न रूप से चालू रखा । बहुत से बौद्ध और वेदिक-शास्त्रो की प्रतिलिपियाँ आज भी जैन-भण्डारो में सुरक्षित है। ___ जैनाचार्यो ने बहुत से जैनेतर-ग्रन्थो की टीकाएबना कर अपने अनेकान्तवादी दृष्टिकोण का सुन्दर परिचय दिया । भानुचन्द्र और सिद्धचन्द्र की बनाई हुई जो कादम्बरी की टीका है, उसे पडितो ने मुख्य रूप से मान्य किया है । जैनाचार्यो ने रघुवश, कुमारसम्भव, नैषध आदि अनेक काव्यो की टीकाए बनाई है । सारस्वत, कातन्त्र आदि व्याकरण, न्याय-शास्त्र तथा और भी दूसरे विषयो को लेकर इस तरह अपनी लेखनी चलाई कि साहित्य सभी की समान सम्पत्ति हैयह कहावत चरितार्थ हो गई। ___ कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र का समय सस्कृत के ह्रास की ओर झुकने वाला समय था । आचार्य हेमचन्द्र प्राकृत और अपभ्रश के समर्थक थे। फिर भी उन्होने सस्कृत-साहित्य को खूब समृद्ध बनाया । फलतः उसके रुके हुए प्रवाह को अन्तिम श्वास गिनने का मौका न मिल सका। आचार्य हेमचन्द्र ने पूर्वाचार्यों की आलोचनाएं की और उनकी विशेषताओ का आदर भी किया । 'सूक्ष्मदर्शिना धर्म-कीर्तिना' आदि को जेनेतर आचार्यों के विषय मे इनके उद्गार निकले है, वे इनकी उदार-वृत्ति के परिचायक है। समस्त जन विद्वानो के प्रौढतम तों, नये-नये उन्मेपवाले विचारो, चिरकाल के मन्यन से तैयार की हुई नवनीत जैसी सुकुमार रचनाओ, हिमालय जैसे उज्जवल अनुभवो और सदाचार का निरूपण सस्कृत भाषा में हुआ है। मध्ययुग जनाचार्यो ने अलौकिक सस्कृत-भाषा को जनसाधारण को भाषा करने का जो प्रयत्न किया है, सम्भवत उसका मूल्यांकन ठीक नही हो पाया। आगमो की वृत्तियो और टीकाओं में संस्कृत-भाषा को व्यापक बनाने के लिए मध्ययुग के इन आचार्यों ने प्रान्तीय शब्दो का बहुत सग्रह किया । उत्तरवर्ती
SR No.010279
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages183
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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