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RamnyonNKARMAWARENAVARANAKAMAMMALAMNAAMKALNwAWANIMAHIMALAYANAMANI
१९८] जैन युग-निर्माता।
___ महाराजाके संदेशको सुनकर शूरवीरोंके हृदयों में वीरत्वका संचार होने लगा। उनके प्रत्येक अंग जोशसे फड़कने लगे, किन्तु अपराजितकी बढ़ी हुई शक्तिके मागे उनकी वीरताका उबाल हृदयमें ठकर ही ठंडा पड़ गया, उन सबका उत्साह भंग हो गया ।
सामों में से किसी एकका भी साहस नहीं हुआ कि जो वीरत्वका बीड़ा उठाने, वे एक दूसरेका मुख देखते हुए मौन रह गए। इसी समय एक सुन्दर कांतिवाले सुगठित शरीर युवकने राजसभाके मध्यमें उपस्थित होकर उस बीडको ठा लिया। समस्त राज्यसभा पाश्चर्यसे उस साहसी कांतिवाम युवकका मुंह निरीक्षण करनेको अमुक हो उठी, किन्तु यह क्या ! उन्होंने देखा यह तो द्वारिकाके युवराज राजकुमार गजकुमार थे । उनके मुखमण्डलसे उस समय बीरताकी अपूर्व ज्योति प्रकाशित होरही थी ! साहसके अखंड तेजसे चमकता हुआ उनका मुखमण्डल दर्शनीय था। कुमारने बीड़ेको उठाकर अपने वीरत्वको प्रदर्शित करते हुए दृढ़तापूर्वक कहा-" पिताजी !! मापके प्रतापके सामने वह कायर भजित क्या है ! मापके माशी - दिसे मैं एक क्षणमें उसे आपके चाणों के समीप उपस्थित करता हूं। बाप आज्ञा प्रदान कीजिए. देखिए आपकी कृपासे वह अपराजित, पाजित होकर आपके चरणों में कितना शीघ्र पढ़ता है और अपने दुष्कृत्योंके लिए क्षमा याचना करता हुआ नतमस्तक होता है। उसका प्रताप क्षीण होने में अब कोई विडम्ब नहीं है केवल आपकी भाज्ञाकी ही देरी है।"
युवक गजकुमारका ओजस्वी उचर मुनकर सामन्तगणों के मुंह