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MAINMENSAANGAMINIAMMAWATIMONASAMIRMIREMAINARONMENRISHNAAMANNARAUMARWROIRMONIAN
१५२] जैन युग-निर्माता । अपने साहस, यहांतक कि मनुष्यताका भी बोध नहीं रहता, क्रमशः वह साधारण श्रेणीसे निकल कर अपनेको एक विशाल उच्च स्थानपर भासीन हुमा समझने लगता है, और अन्तमें वह अपने मिथ्या मदत के सम्मुन्च किसी व्यक्तिको कुछ समझता ही नहीं है। यदि उसे अपनी पनुचित शक्तिके विकासके साधन प्राप्त हो ज ते हैं तब तो उसके अभिमानका ठिकाना ही नहीं रहता किञ्चित्मा वैमक अपूर्ण ज्ञान, शारीरिक बल और प्रभाव प्राप्त कर ही वह मरने परोको पृथ्वीपर रखनेका प्रयत्न नहीं करना ।
लंकेश उस समय सार्वभौमिक स्म्राट् था, वह असंख्य राज्यवैभवका स्वामी था। उसका राजामोपर एकछत्र अधिकार था, वह अनेक उत्तमोत्तम विद्याओं का स्वामी था, अपनी विद्याओंका उसे पूर्णतः पभिमान मा, मश्मिानके लिए और आवश्यक ही क्या है ! सत्ता, नर और निष्पना अभिमान-अनलके लिए पृतकी आहुतिएं हैं। अपने बिमानको आकाशमें अटका हुआ निरंक्षण कर उसने अपनी समस्त विद्याओं का उपयोग करना काम किया, 'अपनी समस्त शक्तिको उसने विमान चलाने में लगा दिया, किन्तु उसका विमान वहाँसे टससे मस नहीं हुआ। मंत्र-की लित पुरुषकी तरह वह उस स्थानपर रमित हो गया । मभिमानी संकेशका हृदय जल उठा। वह विमानसे उतरा । उसने नीचे निरीक्षण किया । वहां उसने जो कुछ देखा उससे उसका हृदय कोष और अभिमानसे धधक उठा । उसने देखा कि नीचे वालिदेव तपश्चरणमें मग्न हुए बैठे हैं। .