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[९] महात्मा रामचन्द्र। (मारत-विख्यात महापुरुप)
(१) मंडाका मुख्य द्वार बड़ी मुन्दरतासे मनाया गया था, अनेक देशोसे निमंत्रित नरेश यथास्थान ठे थे। निश्चित समय पर एक मुन्दरी बालाने सभामध्यमें प्रवेश किया, सभी राजाओंकी 'ट उसके मुखमंडल पर थी । सुन्दरी वास्तवमें सुन्दरी थी, उसके प्रत्येक मङ्गसे मादकता छलक रही थी, हाथमें सुगंधित पुप्पोको माला थी, साफ वस्त्रोंसे सपने अंगोंको ढके हुए एक स्मणी उसका मार्ग प्रदर्शन कर रही थी।
अनेक नरेशोंके भाग्यका फैसला करती हुई वह एक स्थान पर रुकी । दर्शकोंके नेत्र भी उसी स्थान पर रुक गए । व्यक्तिका हृदय