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जैन युग-निर्माता।
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कुछ प्रश्न उनके साम्हने रखे उनमें से जिन विद्वान् पुरुषों ने उन प्रश्नों के ठीक उत्तर दिए उनका एक संघ बनाया, उस संघके सभासद होनेवाले सदाचारी और मात्मज्ञानमें रुचि रखनेवाले पुरुषोंको उन्होंने 'ब्रह्मग' वणकी संज्ञादी। उन्हें देव, शास्त्र, गुरुपर सच्ची प्रद्धा रखनेका मादेश देकर उसकी स्मृतिके लिए तीन तागोवाला एक सून उनके गलेमें डाला जिसे ब्रह्म सूत्र नाम दिया। ब्रह्म सूत्र रखनेवाले ब्रह्मणों को उन्होंने नीचे लिखी क्रियाओंके करने का उपदेश दिया।
(१) देवपूजा-नित्य प्रति भक्तिभावसे देवकी पूजा करना।
(२) गुरू उपासना-अपनेसे अधिक ज्ञानवाले पुरुषों की विनय और सेवा करना।
(३ ) स्वाध्याय-ज्ञानकी उन्नति करने के लिए ग्रंथों का पठन पाठन करना, और उनकी रचना करना ।
(४) संयम-अपनी इन्द्रियों और मनको अपने काबूमें रखनेकी कोसिम करना ।
(५) तप-कुछ समय के लिए एकति चिंतम और भात्म ध्यान करना।
(६)दान-दान ग्रहण करना, और दानकी शिक्षा देना।
इन छह मावश्यक कृत्यों को नित्य प्रति करना, और नीके लिखे दश नियमों का पालन करना।
(१) बारकपनसे ही विद्याका मध्ययन करना ।