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कर्मयोगी श्री ऋषमदेव । [१७ ? हुए ऋषभदेवने जब नीचे उताना उचित नहीं समझा, वे एक ग ही विलंब अब अपने लिए अनुचित समझते थे, उन्होंने युवराज तको अयोध्याका राज्य प्रदान किया। दूसरे राजकुमारोंको भी नके योग्य व्यवस्था उन्होंने को । फिर माता, पिता और पत्नीको बोधित किया। उनके हृदयके मोहके जालको तोड़ दिया । वे तपरणके लिए जंगल हो चल दिए।