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श्रद्धालु श्रेणिक विसार ।
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मंडप तैयार कराया। बौद्ध साधु उस मंडा में ध्यानस्थ होगए । उनकी दृष्टि बंद भी, ससिको रोककर काष्टके पुतलेकी तरह समाधिमें मन थे ।
राजा विसार रानी के साथ वहां पहुंचे। रानी चेलनाने उनके परीक्षण के लिए उनसे अनेक प्रश्न किये लेकिन भिक्षुओंने उन्हें सुनकर भी उनका कोई उत्तर नहीं दिया । पासमें बैठा हुआ एक ब्रह्मवारी यह सब देख रहा था। वह रानी से बोला- माताजी ! यह सभी
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भिक्षुक इस समय समाधिमें मन हैं। सभी साधुओं की आत्म शिवालय में बिराजमान हैं। देह सहित भी इस समय ये सिद्ध हैं इसलिए आपको इनसे कोई भी उतर नहीं मिलेगा ।"
ब्रह्म बारीके इस उत्तरसे चलनाको कोई संतोष नहीं हुआ । लेकिन वह तो पूर्ण परीक्षण चाहती थी । वह जानना चाहती थी कि भिक्षुकी आत्मा वास्तव में सिद्धालय में है, या यह सब ढोंग है । इस परीक्षणका उसके पास एक ही उराय था, उसने मंडप के चारों ओर अमि लगबा दी और उनका दृश्य देखने के लिए कुछ समयतक ठो
खड़ी रही, फिर कुछ सोच समझ कर अपने राजमहलको चलदी !
अम चारों ओर सुलग उठी। जब तक अभिकी ज्वाला प्रचंड नहीं हुई ये बौद्ध भिक्षुक ध्यानस्थ भेंट रहे, लेकिन अग्मिने अपना प्रचंड रूप धारण किया, तो वे अपनेको एक क्षण के लिए ध्यान में स्थिर नहीं रख सके । जिस ओर उन्हें भागनेको दिशा मिली के उसी ओर भागे । कुल क्षणको वका वातावरण बहुत ही अशांत होगया, जब वह स्थान साधुओंसे विककुक रिक्त था ।
एक क्रोधित भिक्षुने जाकर यह सब यात राजा बिनसारको सुनाई तो राजाके कोषका कोई ठिकाना नहीं था, उन्होंने रानीको