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________________ amarAmAmarMAHAMANNANONamevwunwan tiy २८४] जैन युग-निर्माता । __ भारतमें विरोधकी जड़ जमानेवाली विषमताकी बेलिपर उन्होंने प्रथम प्रहार किया। क्रियाकांड के पालने में पली हुई अंध परम्परा और महंमन्यताको उन्होंने समूल नष्ट कर दिया । के दल जाति अधिकारों के बल २३ स्वयंको रच्च और अन्यको नीच सम्झनेवाली कुत्सित भावनाके भयंकर तूफानको शांत करने में उन्होंने अपनी पूर्ण शक्तिका प्रयोग किया. मानद हृदयमें कुंठिन पड़ी आत्मोत्थानकी भावनाको बल दिया और गिरे ए मनोचलको जागृत, विकसित और प्रोत्साहित किया । अपनेको तुच्छ और हीन समझनेवाले, सामाजिक और धार्मिक साधनों टुकार हुए मानवों के मनमें उन्होंने तीक्ष्ण यात्म सम्मानकी प्रकाश सिरों को प्रविष्ट कराया । दकाए हुए दीन हीन मानवोंकी मारम-शक्ति इतनी कुंठित डा चुकी थी कि वे समझ नहीं सकते थे कि हम मानद हैं, हमें भी कोई अधिकार प्राप्त हैं। मांध घर्मिक ठेकेदारों ने मानव शक्तिको बेकार कर दिया था। वे सोच ही नहीं सकते थे कि हमें भी इस गाढ़ अंधकामें कमी प्रकाशकी किरणों का प्रदर्शन प्राप्त हो सकता है। हम इस भयंकर जहाडकी काल काटरी से कभी निकल भी सकते हैं। महावको नहत्व और हीनत्वकी चिकाल से जड़ जमानेवाली उस भावनाको नष्ट करने में काफी शक्ति और भारमनल का प्रयोग करना पड़ा । विषमताकी लहरे प्रचंड थीं। हिंसा और दंभका अकांड तांडव थ', किन्तु महावीरके हृदयमें एक चोट थी वे इस विषमतासे तिलमिला उठं थे। मानव मात्रके कल्याणकी तीव्र भावनाने उन्हें हद
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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