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( ३६ ) धारण करने वाले होते हैं । उनके मुख्य १२ द्वादश गुण निम्न प्रकार से प्रतिपादन किये गए हैं। जैसे कि
२ अशोक वृक्ष--जिस स्थान पर श्रीभगवान् खड़े होते हैं वा वैठते हैं, उसी स्थान पर श्रीभगवान् के शरीर से द्वादश गुणा उच्च भाव से परिणत हुश्रा अशोक नामक वृक्ष तत्क्षण उत्पन्न हो जाता है जो वृक्ष की संपूर्ण लक्ष्मी से युक्त होता है, जिस के देखने से ही भव्य प्राणियों का आध्यात्मिक शोक दूर हो जाता है यद्यपि यह अतिशय वा प्रातिहार्य देव-कृत होता है तथापि श्रीभगवान् के महत् पुण्योदय से यह प्रातिहार्य हुआ करता है।
२ सुरपुष्पवृष्टि-जिस स्थान पर श्रीभगवान् का समवसरण होता है, उस स्थान में एक योजन प्रमाण तक देवगण पांच वर्णमय सुगंधि युक्त धैक्रिय किए हुए अचित्त पुष्पों की वृष्टि करते हैं. जो भव्य प्राणियों को ऐसा दीख पड़ता है कि इस स्थान पर पुष्पों की राशि ही पड़ी हुई है और वे पुष्प ऐसे प्रतीत होते हैं जैसे कि-जलज और स्थलज पुष्प होते हैं। (अर्थात् अचित्त पुष्प होते हैं।
३ दिव्यध्वनि-श्रीभगवान् की सर्व भाषा में परिणत होने वाली अर्द्धमागधी भाषा मे सर्व-वर्णोपेत एक योजन प्रमाण विस्तार पाती हुई प्रधान दिव्य ध्वनि निकलती है, अर्थात् श्रीभगवान् की वचन रूप ध्वनि एक योजन प्रमाण गमन करती हुई प्रत्येक प्राणि की निज भाषा में परिणत होती हुई इतना ही नहीं किन्तु सर्व प्राणियों का संशय दूर करती हुई अर्द्ध मागधी भापारूप दिव्य ध्वनि निकलती है जिस भाषा के सुनने से प्रत्येक प्राणी अपनी २ भाषा मे उस भाषा के भाव को समझ सकता है तथा श्रीभगवान् की भाषा प्रत्येक प्राणी की भाषा रूप में परिणत हो जाती है।
४ चामर-श्रीभगवान् के ऊपर देवगण चमर करते हैं।
५ श्रासन--जव श्रीभगवान् विहार-क्रिया में प्रवृत्त होते है, तव अाकाश मार्ग में स्फटिक रत्नमय और पादुपीठिका युक्त श्रासन तथा रत्नों से जड़ा हुआ स्वर्ण-सिंहासन गमन करने लग जाता है।
, ६ भामंडल--श्रीभगवान् की पीठ को ओर एक तेजोमंडल होता है, जो दशों दिशाओं में ठहरे हुए अंधकार का नाश करता है, और वह भास्कर मंडल ( सूर्य मंडल ) के समान प्रकाशित होता है, जिस कारण सदैव काल श्रीभगवान् के दर्शन भव्य प्राणियों को सुख पूर्वक हो सकते हैं।
७ देवदुन्दुभि-जिस स्थान पर श्रीभगवान् विराजमान होते हैं, उसी स्थान पर देवते दुंदुभि वादित्र द्वारा उद्घोषणा करते हैं; जिस के शब्द को सुन कर अनेक भव्य प्राणी श्रीभगवान् के मुख से निकलती हुई वाणी को सुन कर