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( ३४ ) आत्माएं प्रवृत्त हुए दृष्टिगोचर होते हैं तो उनका परिणाम भी उन के लिये फिर दुःख रूप अवश्यमेव होता है । राग में माया और लोभ का भी अन्तर्भाव हो जाता है, सो रागी श्रात्मा को माया और लोभ से भी युक्त मानना पड़ेगा।
१८ द्वेष-वीतराग प्रभु द्वेष से भी रहित होते हैं; कारण कि-जव उन के श्रात्मा में राग भाव किसी पदार्थ पर नहीं रहा तव उन में द्रुप भाव भीनहीं माना जा सकता, क्योंकि-रागी आत्मा में द्वेष भाव अवश्यमेव विद्यमान रहता है। जैसे कि-जब एक पदार्थ पर उस का राग है तो उस से व्यतिरिक्त पदार्थी पर उस का द्वेष अवश्यमेव माना जायगा। जव द्वेष भाव सिद्ध हो गया तव क्रोध और मान उस आत्मा में अवश्यमेव माने जाएंगे । सो जव राग द्वेप की सत्ता विद्यमान रही तो उस आत्मा को सर्वश और सर्वदर्शी स्वीकार करना अत्यन्त अन्याय-शीलता का लक्षण है; क्योंकि-फिर तो जिस प्रकार अस्मदादि व्यक्तियां राग और द्वेष से युक्त हैं उसी प्रकार सर्वज्ञ प्रभु हुए। किन्तु ऐसे नहीं हैं । अपितु सर्वज्ञ प्रभु सर्वथा राग द्वेष से रहित होते हैं । यदि ऐसे कहा . जाय कि-जव सर्वज्ञ प्रभु दया का उपदेश करते हैं, तथा "अभय दयाणं" सूत्र के द्वारा जब वे अभयदान के देने वाले लिखे हैं तो क्या जिस जीव को वे वचाते है उस जीव पर उन का राग नहीं होता? सो यह शंका भी युक्ति से शून्य ही है। क्योंकि प्रत्येक प्राणी की रक्षा का उपदेश करना तथा उनको बचाना यह एक करुणा का लक्षण है। राग स्वार्थमय होता है, करुणा निःस्वार्थ की जाती है, तथा राग तीन प्रकार से कथन किया गया है। जैसे कि-काम रागविषयों पर, स्नेहराग-संवन्धियों पर और दृष्टिराग-मित्रों पर । सो ये तीनों प्रकार के राग आशावान् है । लेकिन-प्रेम श्राशा रहित और करुणा रसमय तथा शान्ति रसमय होता है। आत्म-प्रदेशों में तद्प होकर रहता है। अतएव श्रीभगवान् प्राणी मात्र से प्रेम करने वाले और सब जीवों की रक्षा करने वाले होते है। तथा यदि ऐसे कहा जाय कि-जो शुभ वा अशुभ क्रियाएं की जाती है। उनका फल रूप कर्म अवश्यमेव भोगने में आता है; सो जो श्रीभगवान् अनन्त आत्माओं पर करुणा भाव धारण करते हैं, फिर इतना ही नहीं किन्तु उन जीवों की रक्षा के लिये उपदेश भी करते हैं । तो उक्त क्रियाओं के फल रूप कर्म वे कहां पर भोगते हैं ? इस शंका का समाधान यह है किश्रीभगवान् दयामय चित्त से प्राणीमात्र की रक्षा का उपदेश करते है नतु राग द्वेष भावों के वशीभूत होकर । सो कर्मों के वन्धन के मुख्य कारण राग द्वेष ही प्रतिपादन किये गए हैं । नतु दयाभाव कमी के बन्धन का मुख्य कारण है। तथा जिस प्रकार सूर्य का निज गुण प्रकाश स्वाभाविक होता है, ठीक तद्वत् श्री भगवान् का सर्व जीवों से वात्सल्य भाव धारण करना यह स्वभाविक गुण