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करना तथा
परिणाम जो अतिविप्रकृष्ट देश है वहाँ तक गमन हस्व देश पर्यन्त गमन करना । जैसे कि - एक पुद्गल तो एक समय में पूर्व लोकान्त से पश्चिम लोकान्त तक गति करता है उसका नाम दीर्घगति परिणाम कहा जाता है और एक पुद्गल अपने स्थान से चल कर दूसरे श्राकाश प्रदेश पर स्थिति कर लेता है । उस का नाम हस्वगति परिणाम होता है । सारांश यह है कि - पुद्गल उक्त चारों प्रकार की गतियों में परिणत होता रहता है । इसी का नाम गति परिणाम कहा जाता है ।
अब शास्त्रकार संस्थान परिणाम विषय में कहते हैं
संठाणपरिणामेणं मंते कतिविहे प. १ गो. ! पंचविहे पतंजहा- परिमंडल संठाणपरिणामे वहसंठाणपरिणामे तससंठारण परिणामे चउरसं संठाणपरिणामे ययसंठाणपरिणामे ।
भावार्थ - हे भगवन् ! संस्थान परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम ! संस्थानपरिणाम पांच प्रकार से कथन किया गया है जैसे कि - परिमंडल ( चूड़ी के आकार गर ) संस्थानपरिणाम, गोलाकार ( वृत्ताकार ) परिणाम, त्र्यंस ( श) संस्थानपरिणाम चतुरंश संस्थान परिणाम, दर्घािकार संस्थान अर्थात् पुद्गल उक्त पांचों ही आकारों में परिणत होता रहता है |
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अब भेद परिणाम विषय कहते हैं
भेद परिणामेणं कतिविधे प १ गोयमा ! पंचविहे प. तं जहा - खंडभेद- . परिणामेणं जाव उक्करिया भेदपरिणामेणं ।
भावार्थ--हे भगवन् ! भेदपरिणाम कितने प्रकार से वर्णन कियागया है ? हे गौतम ! भेदपरिणाम पांच प्रकार से वर्णन किया गया है जैसे कि -- खंडभेद यावत् उत्करिका भेद | इनका वर्णन भाषापद में
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सविस्तर रूप से किया गया है । श्रतएव उस स्थान से देखना चाहिए । कारण कि- जो पुद्गल भेदन होता है वह पांच प्रकार से होता है । सो इसी का नाम भेदपरिणाम है ।
वण्णपरिणामेणं अंते कतिविहे प. १ गोयमा ! पंचविहे प. तं.
कालवण्ण
परिणामे जाव सुक्किलवण परिणामे ।
भावार्थ-हे भगवन् ! वर्ण परिणाम कितने प्रकार से प्रतिपादन किया गया है ? हे गौतम! वर्ण परिणाम पांच प्रकार से वर्णन किया गया है । जैसे कि--कृष्ण वर्ण परिणाम, नील वर्ण परिणाम, पीत वर्ण परिणाम, रक्त वर्ण परि