________________
( २६३ ) और अत्यन्त विशुद्ध परिणाम वाले जीव का शुक्ललेश्या में परिणमन मानां गया है । सो उक्त पद लेश्याओं का पूर्ण विवरण प्रज्ञापन सूत्र के १७वे लेश्या पद में बड़े विस्तार से कथन किया गया है वहां से देखना चाहिए।
जीव पट् लेश्याओं में ही परिणत होता है। इसी कारण से कमाँ का बंध जाव के प्रदेशों के साथ होजाता है। जव चतुर्दशवेंगुण स्थानारूढ जीव होता है तव अलेश्यी होकर ही मोक्ष गमन करता है, पहली तीन अशुभ लेश्याएं है और तीन शुभ । अतएव अशुभ लेश्याओं से अन्तःकरण को शुद्ध कर शुभलेश्याओं में ही परिणत होना चाहिए ताकि जीव को धर्म की प्राप्ति हो। जिस प्रकार स्निग्ध पदार्थ से वस्तु का बंध होना निश्चित है, उसी प्रकार लेश्याओं द्वारा कर्मों का बंध होना स्वाभाविक बात है।
अब सूत्रकार लेश्या के पश्चात् योगपरिणाम विपय कहते हैं जैसे कि
जोग परिणामेणं भंते कतिविधे पं. १ गोयमा! तिविधे प.तं. मणजोगपरिणामे वयजोगपरिणामे कायजोगपरिणामे ।
भावार्थ हे भगवन् ! योगपरिणाम कितने प्रकार से वर्णन किया गया है ? हे गौतम ! योग परिणाम तीन प्रकार से प्रतिपादन किया गया है जैसे कि-मनोयोगपरिणाम, वचनयोग परिणाम और काययोग परिणाम । इसका साराँश यह है कि-जव मन के द्वारा पदार्थों का निर्णय किया जाता है तब आत्मा का परिणाम मन में होता है क्यों कि-आत्मा के परिणाम (परिणत) होजाने से ही मन की स्फुरणा सिद्ध होती है । इसी कारण आत्मा के भाव हीयमान, वर्द्धमान तथा अवस्थित माने जाते है। शास्त्रों में मन की करण संज्ञा मानी गई है । करण वही होता है जो कर्ता की क्रिया मे सहायक वन सके। जब आत्मा मनोयोग में प्रवृत्त होता है तव मन के मुख्यतया चार भेद माने जाते हैं। जैसेकि-सत्यमनोयोग, असत्यमनोयोग: मिश्रितमनोयोग और व्यवहारिक मनोयोग । नात्मा का लक्षण वीर्य और उपयोग माना गया है । सो जव आत्मा का बल वीर्य मनोयोग में जाता है तव मनोयोग की निष्पत्ति मानी जाती है। अपितु पंडित वीर्य बाल वीर्य और बाल-पंडितवीर्य, इस प्रकार के वीर्यों के कारण से मनोयोग के असंख्यात संकल्प (स्थान) कथन किए गये है। वे संकल्प शुभ और अशुभ दोनों प्रकार से प्रतिपादन किये गए हैं। मन एक प्रकार से सूक्ष्म चतुःप्रदेशिक परमाणुओं का पिंड है । आत्मा के परिणत हो जाने से ही मनोयोग कहा जाता है। जिस प्रकार मनोयोग का वर्णन किया गया है ठीक इसी प्रकार वचनयोग और काययोग के विषय में भी जानना चाहिए। सारांश इतना ही है कि-तीन योगों में श्रान्मा का परिणाम प्रतिपादन