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किन्तु भविष्यत् काल में अनंत वार सृष्टि रचीं जाएगी और अनंत ही बार इस सृष्टि का प्रलय किया जायगा तो इस क्रियात्मक कार्य से परमात्मा की शक्ति कुछ न्यून होगई ? इस शंका के उत्तर में वे वादी कहते हैं कि-शक्ति न्यून नहीं होसकती है क्योंकि - ईश्वर परमात्मा अनंत शक्तिमान् है । सो जिस प्रकार अनंत शक्ति का अंत नहीं आता ठीक उसी प्रकार जीव भी तो अनंत हैं, इनका अंत किस प्रकार आजाएगा ? इस तरह अनंत काल का उदाहरण भी निर्मूल सिद्ध हुआ क्योंकि जिस प्रकारं कर्तायादियों के मानने के अनुसार ईश्वर की अनंत शक्ति किसी भी काल में न्यून नहीं होती उसी प्रकार अनंत आत्माएँ भी किसी काल में संसार चक्र से बाहिर नहीं हो सकती तथा जब आज पर्यन्त अनादि संसार मानने पर मुक्त नहीं होसका तो भला फिर आगे को इस के अंत होने की संभावना किस प्रकार की जासकती है ? 'अतएव मोक्षात्माओं की पुनरावृत्ति मानना हीं युक्तियुक्त सिद्ध होता है । सो वे मोक्षात्माएँ अपने आत्मिक अनंत और अक्षय सुख में लीन हो रहे हैं । वे कर्म जन्य सुख वा दुःख से सदैव रहित हैं और सर्व लोकालोक के भांवों को हस्तामलकवत् देख रहे हैं उनका ज्ञान सर्व व्यापक हो रहा है । यदि कोई ऐसे कहे कि—उनको वास्तव में क्या सुख है ? तो इस शंका के समाधान में यह सहज में ही कहा जासकता है कि - व्यवहार पक्ष में संसार में जिस समय जिस वस्तु के न मिलने के कारण दुःखं माना जाता है वह दुःख मोन में नहीं है । क्योंकि- सर्व दुःखों के कारण कर्म ही हैं सो वे मोक्षात्माएँ कर्म कलंक से सर्वथा रहित हैं तो फिर उनको कर्मजन्य सुख वा दुःख किस प्रकार होसके ? अतएव सिद्ध हुआ कि - मोक्षात्माएँ अनंत सुख में लवलीन है और लोकाग्र में विराज मान हैं । अव इस में यह शंका उपस्थित होती है किजव मोक्षात्माएँ कर्म से रहित हैं तो भला फिर उन की विना कर्मों से लोकांत पर्यन्त गति किस प्रकार मानी जा सकती हैं ? सूत्रकर्ता ने इस प्रश्न के उत्तर में निम्न प्रकार से समाधान किया है। भव्य जीवों के बोधार्थ वह पाठ अर्थ दोनों लिखे जाते हैं जैसे कि
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अत्थिणं भंते ! अकम्मस्स गती पन्नायति ? हंता अस्थि ॥ कहन भंते ! अकम्मस्स गती पन्नायति ? गोयमा ! निस्संगयाए निरंगणयाए गतिपरिणामेणं बंधण छयणथाए निरंधणयाए पुव्वपओगेणं अकस्मस्त गती पन्नत्ता ॥ कहन्नं भंते ! निस्संगयाए निरंगण्याए गइपरिणामेणं बंधणछयणयाएं निरंधणंयाएं पुव्त्रप्पत्रो कम्मस्स गती पन्नायति ? ।
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भावार्थ - श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामा से श्रीगौतम स्वामी