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________________ ९ २७६ ) पहले कमल के है के से धुआं निकल कर फिर अग्नि शिखा निकल कर वढी सो दूसरे कमल को जलाने लगी, जलाते हुए शिखा अपने मस्तक पर श्रागई और फिर वह अग्नि शिखा शरीर के दोनों तरफ रेखा रूप आकर नीचे दोनों कोनों से मिल गई और शरीर के चारों ओर त्रिकोण रूप होगई। इस त्रिकोण की तीनों रेखाओं-पर र र र र र र र अग्निमय विष्टित हैं तथा इसके तीनों कोनों में बाहर अग्निमय स्वस्तिक हैं । भीतर 'तीनों कोनों में अग्निमय ऊँर लिखे हैं ऐसा विचारे । यह मण्डल भीतर तो आठ कर्मों. को और वाहर शरीर को दग्ध करके राखरूप बनाता 'हुआ धीरे २ शान्त २ शान्त हो रहा है और अग्निशिखां जहां से उठी थी वहीं समागई है। ऐसा सोचना सो अग्निधारणां है। इस मण्डल का चित्र इस तरह पर है: - ररर 0 अग्नि आकार. रररररररररररररररररररररररररररररर । • : रररररररररररररररररररररररररररररररररररररर ररररररररररररररर रररररररररररररररररररररररर
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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