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( २७० ) प्रश्न--वह अंतराय कर्म किन २ कारणों से वांधा जाता है ?
उत्तर-प्रत्येक प्राणी की कार्यसिद्धि में विघ्न डाल देने से इस कर्म की उपार्जना की जाती है। इस कर्म के बंधन के मुख्य कारण पांच हैं। जैसेकि
अंतराइयकम्मा सरीर पुच्छा, गोयमा ! दाणंतराएणं लाभंतराएणं भोगंतराएणं उवभोगंतराएणं वीरियंतराएणं अंतराइयकम्मा सरीरकम्मा सरीरप्पयोग बंधे ॥
भावार्थ-इस सूत्र में श्रीगौतम स्वामीजी श्रीश्रमण भगवान् महावीर स्वामी जी से पूछते हैं कि हे भगवन् ! अंतरायिक कार्मण शरीर किन .२ कारणों से वांधा जाता है ? इस प्रश्न के उत्तर में श्री भगवान् बोले कि हे गौतम ! अंतरायिक कार्मण शरीर पांच कारणों से बांधा जाता है । जैसेकिदान की अंतराय देने से,किसी को लाभ होता हो उस में विघ्न डालने से, भोगों की अंतराय देने से, जो वस्तु पुनः २ भोगने में आती हो उसकी अंतराय देने से अर्थात् उपभोग्य पदार्थों के विषय अंतराय देने से और वल वीर्य की अंतराय देने से । जैसेकि--कोई पुरुप शुभ कर्म विषय पुरुपार्थ करने लगा तव उस पुरुप को विघ्न उपस्थित कर देना ताकि वह उस काम को न कर सके । इस प्रकार की क्रियाओं के करने से जीव अंतराय कर्म वांध लेता है, जो दो प्रकार से भोगने में आता है जैसेकि--जो जो प्रिय पदार्थ अपने पास हों उनका वियोग और जिन पदार्थों के मिलने की आशा हो वे न मिल सकें तव जानना चाहिए कि--अंतराय कर्म उदय में आरहा है । अतएव जव आत्मा आठों कर्मों से विमुक्त होजाता है तव ही उस आत्मा को निर्वाण पद की प्राप्ति होती है।
___इस स्थान पर तो केवल आठ कर्मों के नाम ही निर्देश किये गए हैं किन्तु जैनशास्त्रों में तथा कर्मप्रकृति आदि ग्रन्थों में इन कर्मों की उत्तर प्रकृतियों का सविस्तर स्वरूप लिखा गया है अर्थात् प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश आदि विषयों में सविस्तर रूप से व्याख्या लिखी गई है।
- अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि कर्म जड़ होने पर भी जीव को किस प्रकार फल दे सकते हैं ? पाँच समवाय प्रत्येक कार्य में सहायक होते हैं जैसे कि-काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरुषार्थ । सो ये पाँच ही समवाय प्रत्येक कार्य के करते समय सहायक बनते हैं। जिस प्रकार कृषिकर्म कर्ता जव पाँच समवाय उसके अनुकूल होते है तव ही वह सफल मनोरथ होता है जैसे कि-पहिले तो खेती में वीज वीजने (बोने) का समय ठीक होना चाहिए, जव समय ठीक आगया हो तव उस वीज का अंकुर देने का