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( २२६ ) फिर सर्वद्रव्यों का भाजनरूप आकाशद्रव्य जो प्रतिपादन किया गया है. उस का अवकाशरूप लक्षण कथन किया है, क्योंकि-आकाश का लक्षण वास्तव में अवकाशरूप ही है जिस प्रकार दुग्ध से भरे हुए कलश में शक्करादि पदार्थ समवतार हो जाते हैं ठीक उसी प्रकार प्रत्येक पदार्थ को अवकाश देने के लिये आकाशद्रव्य भाजनरूप माना गया है । तथा जिस प्रकार सहस्त्र दीपकों का प्रकाश परस्पर सम्मिलित होकर ठहर जाता है ठीक उसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य आकाश में सम्मिलित होकर ठहरे हुए हैं। अतएव आकाश का अवकाशरूप लक्षण ही मानना युक्तियुक्त है । यद्यपि कतिपय वादियों ने “शब्दगुणकमाकाशम्" इस प्रकार से पाठ माना है, परन्तु उन का यह लक्षण युक्तियुक्त नहीं है क्योकि यह बात स्वतः सिद्ध है किगुणी प्रत्यक्ष और गुण परोक्ष होता है परन्तु इस स्थान पर शब्दरूप गुण तो इन्द्रिय-ग्राह्य है और आकाश इन्द्रिय-ग्राह्य पदार्थ नहीं मानागया है तथा च
काणाद शब्दस्तव चेन्नभोगुणोऽतीन्द्रिय स्यात् परिमाणवत्कथम् ? गुणोऽपि चेत्तर्हि तदाश्रये च द्रव्येऽगृहीते किमु गृह्यतेऽसौ १ ॥
युक्तिप्रकाश श्लोक ॥ २२॥ टीका-अथ शब्दस्य गुणत्वं निषेधयति। क्राणाद-हे काणाद!तव मतचेनभोगुणः शब्दोऽस्ति तदाऽतीन्द्रिय इन्द्रियाऽग्राह्यः कथं न स्यात् परिमाणवत् ? अधिकाराद् गगनपरिमाणमिव यथा गगनपरिमाणं तद्गुणत्वेनाऽतीन्द्रियं तथा शब्दो भवेदिति तस्मात् न गगनगुणः शब्दः । ननु शब्दस्य गगनगुणत्वं माऽस्तु तथाऽपि कस्यचिद् द्रव्यान्तरस्य गुणोऽयं भविष्यतीति वैशेपिककदाशां निराकरोति चेत् शब्दो गुणस्तर्हि तदाश्रये द्रव्येऽगृहीतेऽसौ कथं गृह्यते? तस्मानायं गणोऽपीति वृत्तार्थ:
भावार्थ-इस कारिका का मन्तव्य यह है कि-जव आकाश इन्द्रिय अग्राह्य पदार्थ है तो भला उस का गुण जो शब्द माना गया है वह इन्द्रिय अग्राह्य कैसे न होगा? अपितु अवश्यमेव होना चाहिए । परन्तु शब्द श्रोत्रेन्द्रिय ग्राह्य माना गया है अत एव शब्द अाकाश का गुण युक्तिपूर्वक सिद्ध नहीं होता यदि ऐसे कहा जाय कि-श्राकाश में जो द्रव्य स्थित है उन द्रव्यों में जव परस्पर संघर्पण होता है तव शब्द उत्पन्न होजाता है, अतएव आकाशस्थ द्रव्य होने से वह शब्द आकाश का ही मानना चाहिए । इस शंका का यह समरधान किया जाता है कि-जब द्रव्यों के संघर्षण से शब्द उत्पत्ति मान ली जाए तव अाकाश का गुण शब्द तो सर्वथा निर्मूल सिद्ध होगया। क्योंकि-आकाशएक अरूपी पदार्थ संघर्प करता हीनहीं है। अरूपी पदार्थ एक रसमय होता है। यदि आकाश में स्थित परस्पर द्रव्य संघर्पण करते हैं उन के कारण से शब्द