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( २१४ ) अनर्थ दण्ड व्रत के पांच अतिचार वर्णन किये गये हैं जैसेकि- '
. १ कन्दर्प-कामचेष्टा को उत्पन्न करने वाले वाक्यों का प्रयोग करना तथा शरीर के अवयवों द्वारा उपहास्यादि क्रियाएं करना अर्थात् जिन चेष्टाओं से काम की जागृति हो उन्हीं में निमग्न रहना यह प्रथम अतिचार है, क्योंकिइन से ही कन्दर्प-उद्दीपन होजाता है।
२ कौत्कुच्यम्-जिस प्रकार भांड लोग मुखविकारादि द्वारा हास्यादि क्रियाएं उत्पन्न करते रहते हैं, उसी प्रकार अन्य आत्माओं को विस्मय करने के लिये तद्वत् क्रियाएं करना यह भी अनर्थ. दण्ड है। होली आदि पर्वो मैं वहुतसे लोग विशेषता से उक्त क्रियाएं करते हैं। जिसका फल क्लेश होता है ऐसे कर्म कदापि न करे।
३ मौखर्यम्-धृष्टता के साथ प्रायः मिथ्या वचनों का प्रयोग करना और असंबद्ध वचन बोलते जाना, जिस से अर्थसिद्धि कुछ भी न हो यह भी एक अतिचार है।
४ संयुक्ताधिकरणम्-जिन उपकरणों के संयोग से हिंसा होने की संभावना हो उनका संग्रह करना संयुक्ताधिकरण अतिचार होता है। क्योंकिजो उस उपकरण को लेजायगा वह अवश्य ही हिंसक क्रियाओं में प्रवृत्त हो जायगा। जैसेकि-तीर के साथ धनुष मुशल के साथ उलूखल फाले के साथ हल इत्यादि । सो उक्त उपकरणों का दान वा परिमाण से अधिक संग्रह कदापि न करना चाहिए।
५ उपभोगपरिभोगातिरिक्त अपने शरीर के लिये यावन्मात्र पदार्थों की उपभोग और परिभोग के लिये आवश्यकता हो उन से अधिक संग्रह करना वर्जित है। क्योंकि जब लोग देखते हैं कि-इसके पास अमुक पदार्थ अधिक है तब वे उस से लेकर आरंभ समारंभ में प्रवृत्त होजाते हैं, जैसे-कल्पना करो, कोई पुरुष कूपादि के ऊपर स्नान करने के लिये तैलादि विशेष ले गया नब वहुतसे लोग उस से तैल लेकर स्नानादि क्रियाओं में प्रवृत्त हो जाते है अतएव हिंसाजनक उपभोग और परिभोग पदार्थों का अधिक संग्रह न करना चाहिए, क्योंकि-अर्थदण्ड तो गृहस्थ को लगता ही है किन्तु अनर्थदण्ड से तो अवश्यमेव वचना चाहिए।
उक्त आठों व्रतों के लिये शांति के उत्पादक श्रीभगवान् ने चार शिक्षाव्रतों का वर्णन किया है। जिनमें प्रथम शिक्षाबत सामायिक है।
सामायिक सम-आय-और इकण्-प्रत्यय के लगने से सामायिक शब्द सिद्ध होता है, जिसका मन्तव्य है कि-रागद्वेष से निवृत्त होकर किसी काल पर्यन्त प्रत्येक प्राणी के साथ "सम" भाव रक्खा जाय । प्रत्येक जीव के साथ