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दक वा स्थविरपदविभूपित जैनमुनि स्वामी गणपतराय जी महाराज के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उस समय श्री उपाध्याय जी महाराज ने आपको निजलिखित जैनतत्त्वकलिकाविकास ग्रंथ का पूर्वार्द्ध दिखलाया । उसको देखकर वा सुनकर आपने स्वकीय भाव प्रकट किये कि यह ग्रंथ जैन और जैनेतर जनता में जैन धर्म के प्रचार के लिये अत्युत्तम है । साथ ही आपने इसके मुद्रणादिव्यय के लिये अपनी उदारता दिखलाई जिसके लिए समस्त श्री संघ श्रापका आभारी है। प्रत्येक जैन के लिए आपकी उदारता अनुकरणीय है। यह सव आपकी योग्यता का ही आदर्श है । आज कल आप करनाल में अफ़सरमाल लगे हुए हैं।
आपके सुपत्र लाला चन्द्रवल बी. ए. एल एल. वी पास करके अम्वाले में वकालत कर रहे हैं। जिस प्रकार वट वृक्ष फलता और फूलता है ठीक उसी प्रकार आपका खानदान और आपका परिवार फल फूल रहा है। यह सव धर्म का ही माहात्म्य है । अतएव हमारी सर्व जैनधर्म प्रेमियों से नम्र
और सविनय प्रार्थना है कि आप श्रीमान् राय साहिब का अनुकरण कर सांसारिक व धार्मिक उन्नित करके निर्वाण पद के अधिकारी बनें।
भवदीय सद्गुणानुरागी
श्री जैन संघ, लुधियाना (पंजाब)