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का अपि भवन्तीत्यर्थ ।
अर्थ-ऊपर जो सप्त संख्यक नय कहे गये हैं। वे उत्तर २ संख्या में विशद्ध माने जाते हैं । अर्थात् पूर्व नय से उत्तर नय अत्यन्त विशुद्ध हैं। इतना ही नहीं किन्तु एक एक नय के उत्तर भेद सौ२ होते हैं इसलिये सात मूल नयों के उत्तर भेद सात सौ होते हैं।
अथैवंभूतसमभिल्लयोः शब्द एव चेत् ।
अन्तर्भावस्तदा पञ्च नयाः पंचशतीभिदः ॥ २० ॥ वृत्ति-अथ चेद् यदि एवम्भूत-समभिरूढ़योः एवंभूतश्च समभिसदश्च तो तथा तयोईयोः' शब्दे-शब्दनयेऽन्तर्भावो भवेत् , तदा एवेत्यवधारणात् पंच नया भवति। तदा पञ्चशतीभिदः-पञ्चानां शतानां समाहारः पञ्चशती। भिद्यन्ते श्राभिस्ताभिदः, पंचशती च ताः भिदश्चेति तथा नयानां भवन्तीत्यर्थः।
अर्थ-यदि एवंभूत और समभिरूढ़ यह दोनों नय. तथा यह दोनो शब्दनय शब्दनय में अन्तर्भाव हो जावे तव फिर पांच नय होते हैं और सात सौ भेदों के विना केवल पांच नयों के ५०० भेद हो जाते हैं तात्पर्य इस कारिका का इतना ही है कि जब शन्दनय के ही अन्तर्भूत समभिरूढ़ और एवंभूत नय किये जायें तव मूल पांच नय ही रह जाते हैं। अतः फिर उनके उत्तर भेद भी ५०० सौ रह जाते हैं । एवं शब्द सूत्र में अवधारण अर्थ में आया हुआ है।
द्रव्यास्तिकपर्यायास्तिकयोरन्तर्भवन्त्यमी। ___आदावादिचतुष्टयमन्त्ये चान्त्याऽस्त्रयस्तत ।। २१ ॥
वृत्तिः-अमी सप्तापि नया द्रव्यास्तिकपर्यायास्तिकयोरन्तर्भवति. द्रव्यमेवास्तितया प्ररूपयन् द्रव्यास्तिकः पर्यायभावमेवास्तितया अभिदधत् पर्यायास्तिकः द्रव्यास्तिकश्च पर्यायास्तिकश्च तौ तथा तयोर्द्धयो मध्ये अन्तर्भवन्त्यवतरन्ति । आदौ द्रव्यास्तिके आदिचतुष्टय नैगमादि. चत्वारो भवन्ति । अन्तभवोन्त्यस्तस्मिन्नन्त्ये पर्यायास्तिके अन्त्यास्त्रयः शब्दाद्याः भवन्तीत्यर्थः। ____ अर्थ-यह सातों नय द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक नयों के अन्तर्भूत भी हो जाते हैं। क्योंकि-द्रव्य के प्रतिपादन करने से द्रव्यास्तिक नय कहा जाता है। और पर्याय के वर्णन करने से पर्यायास्तिक नय कहा जाता है सो इस प्रकार सातों नय उन दोनों नयों के अन्तर्भूत माने जा सकते हैं अपितु आदि के चारों नय द्रव्यार्थिक नय के नाम से कहे जाते हैं अन्त के तीनों नय पर्यायार्थिक नय के नाम से कथन किये गए हैं क्योंकि-नैगमादि चारों नय द्रव्य को मुख्य रखते है । शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत नय यह तीनों नय पर्याय को मुख्य रखते हैं । इसी वास्ते इन को पर्यायार्थिक नय कहा गया है।