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________________ जैन दर्शन का तत्त्ववाद जीव के साथ सजीव का सम्बन्ध क्रमशः टूटता जाता है और चेतन तत्व विशेष से सविशेष रूप प्रकटित होता जाता है । प्रौर एक दिन जब श्रात्मा जड की लगावट को पूरे तौर पर खत्म, कर देता है और शरीर के अन्तिम बन्धन से जब वह छूट जाता है तो उसकी मुक्ति हो जाती है। इसे ही मोक्षतत्व कहा गया है। तब श्रात्मा निर्विकार, निराकार रूपी हो जाता है और नित्य व शाश्वत रूप से ससार से विलग हो जाता है । ८६ इस प्रकार जैन दर्शन के ये वो तत्त्व-समूचा तत्ववाद सांसारिक प्रात्मा से मुक्त प्रात्मा की प्रक्रिया का दर्शन हे या यो कहे कि ग्रात्मा के चरम विकास का गति चक्र है । इसलिए मैं फिर दोहराऊं कि परमात्मा का भजन करो इसका ग्र है कि आत्मा के स्वरूप को समझो भोर आत्मा के स्वरूप का ज्ञान तभी स्पष्ट हो सकेगा जब इस 'तत्ववाद को हम हृदयगम कर लेगे । तत्ववाद से ही हम जान सकेंगे कि धात्मा कैसे गिरता है और कैसे उठता है ? वे कौनसी जड शक्तियाँ है जा झात्मा को मलिन बनाती हैं और उनसे छुटकारा पाने की कौनसी साधना है जिससे मात्मा ऊपर से ऊपर उठती जायगी ? प्रत. इस तत्त्ववाद का चिन्तन, मनन कीजिये ताकि हम भी अपनी श्रात्मास्थिति का उत्पान करके एक दिन घन्तिम तत्व की प्राप्ति कर सके । ॐ शान्ति शान्ति शान्ति । अलवर ता० २४-३-१६५०
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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