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________________ जिन-संस्कृति का राजमार्ग (५) तुच्छ औषधियो का भक्षण किया हो या ऐसे पदार्थों का उपयोग किया हो जिसमे थोडा खाया जाय व ज्यादा फेकना पडे-तो मैं प्रायश्चित करना चाहता हूं। इसी व्रत मे भोजन के अलावा घघे के सम्बन्ध मे १५ कर्मादानो का भी उल्लेख किया गया है कि निम्न प्रकार के धचे जिनमे एक पोर तो हिंसा की मात्रा अधिक होती है और दूसरी ओर जो परिग्रह का भयकर गति से संचय बढाते हैं-श्रावक को नहीं करने चाहिए(१) इंगालकम्मे-कोयले बनाना आदि जिसमे अग्नि का महारम्भ करना पड़े। (२) वरणकम्मे-जगलात के ठेके लेना, लकडी कटवाना प्रादि । (३) भाडीकम्मे-यान या वाहनो को किराये पर चलाने का वधा करना । इसमे वर्तमान यातायात का व्यापार आ जाता है। (४) फोडीकम्मे-जमीन फोडने-खान खदान का काम करना। (५) दन्तवाणिज्जे-दांत-हाथीदांत वगैरा का व्यापार करना । (६) लक्खवाणिज्जे-अनेक जीवो की हिंसा से बनी हुई लाखादि धातुप्रो का व्यापार करना । (७) रसवारिणज्जे-मादक रस-शराब आदि का व्यापार करना । (८) केसवारि ज्जे-सुन्दर केश वाली स्त्रियो का अर्थात् दासियो का क्रय-विक्रय करना। (६) विषवारिणज्जे -विभिन्न प्रकार विष-जहर का व्यापार करना । (१०) जन्तपिल्लण कम्मे-यत्रो द्वारा पीलने का काम कराना, इसमे मिल कारखानो का समावेश हो जाता है । (११) निल्लंछण कम्मे-घोडे, साड यादि को सम्मी करने का व्यापार (१२) दवग्गिदावरण्या--जगल आदि मे आग लगाने का कार्य (१३) सरहदतलावपरिपोपण्या-सरोवर तालाब आदि को साली कराकर सुवाना। (१४) असईजनपोपण्या-आजीविका के लिए हिंसक पशु व
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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