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________________ अपरिग्रहवाद याने स्वामित्व का विसर्जन स्नान के लिए पानी का परिमारण करना (७)वत्यविहं-वस्त्रो की मर्यादा करना (८) बिलेवगविह-शरीर पर लगाये जाने वाले चन्दन केसर आदि को मर्यादा करना (8) पुफ्फविह-फूलो की व फूलमाला की मर्यादा करना (१०) भामरणविह-लकार प्राभूषण की मर्यादा करना (११) धूपविह-धूप दीपादि सामग्री की मर्यादा करना (१२) पेजविहं-पीने की वस्तुत्रो की मर्यादा करना (१३) मवखरणविहं-घेवर प्रादि पक्वान्न की मर्यादा करना (१४) प्रोदरणविहं-रधे हुए चावल थूली यादि की मर्यादा कान्ना (१५) सूपव्हि-मूंग प्रादि दालो की मर्यादा करना (१६) विगयविह-घी, तेल, दूध, दही प्रादि को मर्यादा करना (१७) सागविहंबमा प्रादि शाम की मर्यादा करना (१८) माहुरविहं-मधुर फलो की मर्यादा करना (१६) जीमगविह-बडा, पकौड़ी प्रादि जीमने के द्रव्यो की मर्यादा पारना (२०) पारिणयविह-पीने के पानी की मर्यादा करना (२१) पुष्पमालविरलोग, इलायची प्रादि दातुनो की मर्यादा करना (२२) दाहगमिरयान, वन, साथी, घोडे प्रादि की मर्यादा कारग (२३) पादित-च्या पन्नग प्रादि की मर्यादा करना (२४) पहिबिहजरे, मोजे श्रादि की मर्यादा करना (२५) सचितमिचिन वग्नुप्रो की गर्याका घरमा तथा (६६) दादर-माने-पीने के पान में पाने वाले चितषित पदार्थों की जो पर नियगो से बने हुए है उनकी मर्यादा पन्ना, उप मोग--एक. दार भोगने में माने जाने उल दिलचा परि. भोग-कार-बार जोगने में जाने वाले कापत मादि पवाघों की दस प्राय पो गर्यादा वाचली होती. मी नारा के समय इनके रसाद में निम्न प्रकार ने प्रतिचार को लेना पनी होती है (३) गदा स्परात तरिक्त का हा- बिना हो, ( लिटर (ति का वितात करके) का ___ हा किला हो, (३) १५-६ तार किया हो (१) रातार शिक्षा
SR No.010275
Book TitleJain Sanskruti ka Rajmarg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshlal Acharya, Shantichand Mehta
PublisherGanesh Smruti Granthmala Bikaner
Publication Year1964
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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